बिरद गरीबनिवाज रामको ।
गावत बेद - पुरान, संभु - सुक, प्रगट प्रभाउ नामको ॥१॥
ध्रुव, प्रह्लाद, बिभीषन, कपिपति, जड़, पतंग, पांडव, सुदामको ।
लोक सुजस परलोक सुगति, इन्हमें को है राम कामको ॥२॥
गनिका, कोल, किरात, आदिकबि इन्हते अधिक बाम को ।
बाजिमेध कब कियो अजामिल, गज गायो कब सामको ॥३॥
छली, मलीन, हीन सब ही अँग, तुलसी सो छीन छामको ।
नाम - नरेस - प्रताप प्रबल जग, जुग - जुग चालत चामको ॥४॥
भावार्थः- श्रीरामजीका बाना ही गरीबोंको निहाल कर देना है । वेद पुराण, शिवजी, शुकदेवजी आदि यही गाते हैं । उनके श्रीरामनामका प्रभाव तो प्रत्यक्ष ही है ॥१॥
ध्रुव, प्रह्लाद, विभीषण, सुग्रीव, जड ( अहल्या ), पक्षी ( जटायु, काकभुशुण्डि ), पाँचों पाण्डव और सुदामा इन सबको भगवानने इस लोकमें सुन्दर यश और परलोकमें सदगति दी । इनमेंसे रामके कामका भला कौन था ? ॥२॥
गणिका ( जीवन्ती ), कोल - किरात ( गुह - निषाद आदि ) तथा आदिकवि वाल्मीकि, इनसे बुरा कौन था ? अजामिलने कब अश्वमेधयज्ञ किया था, गजरानने कब सामदेवका गान किया था ? ॥३॥
तुलसीके समान कपटी, मलिन, सब साधनोंसे हीन, दुबला - पतला और कौन है ? पर श्रीरामके नामरुपी राजाके राज्यमें उसके प्रबल प्रतापसे युग - युगसे चमड़ेका सिक्का भी चलता आ रहा है अर्थात् नामके प्रतापसे अत्यन्त नीच भी परमात्माको प्राप्त करते रहे हैं, ऐसे ही मैं भी प्राप्त करुँगा ॥४॥