हिंदी सूची|हिंदी साहित्य|पुस्तक|विनय पत्रिका|
विनयावली ८१

विनय पत्रिका - विनयावली ८१

विनय पत्रिकामे, भगवान् श्रीराम के अनन्य भक्त तुलसीदास भगवान् की भक्तवत्सलता व दयालुता का दर्शन करा रहे हैं।


जो पै चेराई रामकी करतो न लजातो ।

तौ तू दाम कुदाम ज्यों कर - कर न बिकातो ॥१॥

जपत जीह रघुनाथको नाम नहिं अलसातो ।

बाजीगरके सूम ज्यों खल खेह न खातो ॥२॥

जौ तू मन ! मेरे कहे राम - नाम कमातो ।

सीतापति सनमुख सुखी सब ठाँव समातो ॥३॥

राम सोहाते तोहिं जौ तू सबहिं सोहातो ।

काल करम कुल कारनी कोऊ न कोहातो ॥४॥

राम - नाम अनुरागही जिय जो रतिआतो ।

स्वारथ - परमारथ - पथी तोहिं सब पतिआतो ॥५॥

सेइ साधु सुनि समुझि कै पर - पीर पीरातो ।

जनम कोटिको काँदलो हद - हदय थिरातो ॥६॥

भव - मग अगम अनंत है, बिनु श्रमहि सिरातो ।

महिमा उलटे नामकी मुनि कियो किरातो ॥७॥

अमर - अगम तनु पाइ सो जड़ जाय न जातो ।

होतो मंगल - मूल तू, अनुकूल बिधातो ॥८॥

जो मन, प्रीति - प्रतीतिसों राम - नामहिं रातो ।

तुलसी रामप्रसादसों तिहुँताप न तातो ॥९॥

भावार्थः- अरे ! जो तू श्रीरामजीकी गुलामी करनेमें न लजाता तो तू खरा दाम होकर भी, खोटे दामकी भाँति इस हाथसे उस हाथ न बिकता फिरता । भाव यह कि परमात्माका सत्य अंश होनेपर भी उनको भूल जानेके कारण जीवरुपसे एक योनिसे दूसरी योनिमें भटकता फिर रहा है ॥१॥

यदि तू जीभ श्रीरघूनाथजीका नाम जपनेमें आलस्य न करता, तो आज तुझे बाजीगरके सूमके सदृश धूल न फाँकनी पड़ती ॥२॥

अरे मन ! यदि तू मेरा कहा मानकर राम - नामरुपी धन कमाता, तो श्रीजानकीनाथ रघुनाथजीके सम्मुख उनकी शरणमें जाकर सुखी हो जाता और सर्वत्र तेरा आदर होता । लोक - परलोक दोनों बन जाते ॥३॥

जो तुझे श्रीरामजी अच्छे लगे होते, तो तू भी सबको अच्छा लगता; काल, कर्म और कुल आदि जितने ( इस जीवके ) प्रेरक हैं, वे सब फिर कोई भी तुझपर क्रोध न करते । सभी तेरे अनुकूल हो जाते ॥४॥

यदि तू श्रीराम - नामसे प्रेम करता और उसीमें अपनी लगन लगाता, तो स्वार्थ और परमार्थ इन दोनोंके ही बटोही तुझपर विश्वास करते । अर्थात् तू संसार और परलोक दोनोंमें ही सुखी होता ॥५॥

जो तू संतोंकी सेवा करता एवं दूसरोंका दुःख सुन और समझकर दुःखी होता तो तेरे हदयरुपी तालाबमें जो करोड़ों जन्मोंका मैल जमा है, वह नीचे बैठ जाता, तेरा अन्तः करण निर्मल हो जाता ॥६॥

श्रीरामका नाम न लेनेवालोंके लिये संसारका मार्ग अगम्य है और अनन्त है, किन्तु उसीको तू बिना ही श्रमके पार कर जाता । जब श्रीरामके उलटे नामकी भी इतनी महिमा है कि उससे व्याध ( वाल्मीकि ) मुनि बन गये थे, तब सीधा नाम जपनेसे क्या नहीं हो जायगा ? ॥७॥

अरे मूर्ख ! तेरा यह देवताओंको भी दुर्लभ ( मानव ) शरीर यों ही न चला जाता ! तू कल्याणका मूल हो जाता और विधाता तेरे अनुकूल हो जाते ॥८॥

अरे मन ! यदि तू प्रेम और विश्वाससे राम - नाममें लौ लगा देता, तो हे तुलसी ! श्रीराम - कृपासे तू तीनों तापोंमें कभी न जलता ( अथवा यदि ' न तातो '

की जगह ! ' नसातो ' पाठ माना जाय तो इसका अर्थ इस प्रकार होगा हे तुलसी ! श्रीरामकृपासे तू अपने तीनों तापोंको नष्ट कर देता ) ॥९॥

N/A

References : N/A
Last Updated : March 24, 2010

Comments | अभिप्राय

Comments written here will be public after appropriate moderation.
Like us on Facebook to send us a private message.
TOP