देखो देखो, बन बन्यो आजु उमाकंत । मानों देखन तुमहिं आई रितु बसंत ॥१॥
जनु तनुदुति चंपक - कुसुम - माल । बर बसन नील नूतन तमाल ॥२॥
कलकदलि जंघ, पद कमल लाल । सूचत कटि केहरि, गति मराल ॥३॥
भूषन प्रसून बहु बिबिध रंग । नूपुर किंकिनि कलरव बिहंग ॥४॥
कर नवल बकुल - पल्लव रसाल । श्रीफल कुच, कंचुकिलता - जाल ॥५॥
आनन सरोज, कच मधुप गुंज । लोचन बिसाल नव नील कंज ॥६॥
पिक बचन चरित बर बर्हि कीर । सित सुमन हास, लीला समीर ॥७॥
कह तुलसिदास सुनु सिव सुजान । उर बसि प्रपंच रचे पंचबान ॥८॥
करि कृपा हरिय भ्रम - फंद काम । जेहि हदय बसहिं सुखरासि राम ॥९॥
भावार्थः-- देखिये, शिवजी ! आज आप वन बन गये हैं । आपके अर्द्धांगमें स्थित श्रीपार्वतीजी मानो वसन्त - ऋतु बनकर आपको देखने आयी हैं ॥१॥
आपके शरीरकी कान्ति मानो चम्पाके फूलोंकी माला है, सुन्दर नीले वस्त्र नवीन तमाल - पत्र हैं ॥२॥
सुन्दर जंघाएँ केलेके वृक्ष और चरण लाल कमल हैं, पतली कमर सिंहकी और सुन्दर चाल हंसकी सूचना दे रही हैं ॥३॥
गहने अनेक रंगोंके बहुत - से फूल हैं, नूपुर ( पैंजनी ) और किंकिणी ( करधनी ) पक्षियोंका सुमधुर शब्द है ॥४॥
हाथ मौलसिरी और आमके पत्ते हैं, स्तन बेलके फल और चोली लताओंका जाल है ॥५॥
मुख कमल और बाल गूँजते हुए भैंरे हैं, विशाल नेत्र नवीन नील कमलकी पंखड़ियाँ हैं ॥६॥
मधुर वचन कोयल तथा सुन्दर चरित्र मोर और तोते हैं, हँसी सफेद फूल और लीला शीतल - मन्द - सुगन्ध समीर हैं ॥७॥
तुलसीदास कहते हैं कि हे परम ज्ञानी शिवजी ! यह कामदेव मेरे हदयमें बसकर बड़ा प्रपंच रचता है ॥८॥
इस कामकी भ्रम - फाँसीको काट डालिये, जिससे सुखस्वरुप श्रीराम मेरे हदयमें सदा निवास करें ॥९॥