दण्डक
लाल लाड़िले लखन, हित हौ जनके ।
सुमिरे संकटहारी, सकल सुमंगलकारी,
पालक कृपालु अपने पनके ॥१॥
धरनी - धरनहार भंजन - भुवनभार,
अवतार साहसी सहसफनके ॥
सत्यसंध, सत्यब्रत, परम धरमरत,
निरमल करम बचन अरु मनके ॥२॥
रुपके निधान, धनु - बान पानि,
तून कटि, महाबीर बिदित, जितैया बड़े रनके ॥
सेवक - सुख - दायक, सबल, सब लायक,
गायक जानकीनाथ गुनगनके ॥३॥
भावते भरतके, सुमित्रा - सीताके दुलारे,
चातक चतुर राम स्याम घनके ॥
बल्लभ उरमिलाके, सुलभ सनेहबस,
धनी धन तुलसीसे निरधनके ॥४॥
भावार्थः-- हे प्यारे लखनलालजी ! तुम भक्तोंका हित करनेवाले हो । स्मरण करते ही तुम संकट हर लेते हो । सब प्रकारके सुन्दर कल्याण करनेवाले, अपने प्रणको पालनेवाले और दीनोंपर कृपा करनेवाले हो ॥१॥
पृथ्वीको धारण करनेवाले, संसारका भार दूर करनेवाले, बड़े साहसी और शेषनागके अवतार हो । अपने प्रण और कर्मवाले हो ॥२॥
तुम सुन्दरताके भण्डार हो, हाथोंमें धनुष - बाण धारण किये और कमरमें तरकस कसे हुए हो, तुम विश्व - विख्यात महान् वीर हो ! और बड़े - बड़े संग्राममें विजय प्राप्त करनेवाले हो । तुम सेवकोंको सुख देनेवाले, महाबली, सब प्रकारसे योग्य और जानकीनाथ श्रीरामकी गुणावलीके गानेवाले हो ॥३॥
तुम भरतजीके प्यारे, सुमित्रा और सीताजीके दुलारे तथा रामरुपी श्याम मेघके चतुर चातक, उर्मिलाजीके पति, प्रेमसे सहजहीमें मिलनेवाले और तुलसी - सरीखे रंकको राम - भक्तिरुपी धन देनेमें बड़े भारी धनी हो ॥४॥