राग बिलावल
जमुना ज्यों ज्यों लागी बाढ़न ।
त्यों त्यों सुकृत - सुभट कलि भूपहिं, निदरि लगे बहु काढ़न ॥१॥
ज्यों ज्यों जल मलीन त्यों त्यों जमगन मुख मलीन लहै आढ़ न ।
तुलसिदास जगदघ जवास ज्यों अनघमेघ लगे डाढ़न ॥२॥
भावार्थः-- यमुनाजी ज्यों - ज्यों बढ़ने लगीं, त्यों - त्यों पुण्यरुपी योद्धागण कलियुगरुपी राजाकी निरादर करते हुए उसे निकालने लगे ॥१॥
बरसातमें यमुनाजीका जल बढ़कर ज्यों - ज्यों मैला होने लगा, त्यों - त्यों यमदूतोंका मुख भी काला होता गया । अन्तमें उन्हें कोई भी आसरा नहीं रहा, अब वे किसको यमलोकमें ले जायँ ? तुलसीदास कहते हैं यमुनाजीके बढ़ते ही पुण्यरुपी मेघने संसारके पापरुपी जवासेको जलाकर भस्म कर डाला ॥२॥