मेरो भलो कियो राम आपनी भलाई ।
हौं तो साईं - द्रोही पै सेवक - हित साईं ॥१॥
रामसों बड़ो है कौन, मोसों कौन छोटो ।
राम सो खरो है कौन, मोसों कौन खोटो ॥२॥
लोक कहै रामको गुलाम हौं कहावौं ।
एतो बड़ो अपराध भौ न मन बावौं ॥३॥
पाथ माथे चढ़े तृन तुलसी ज्यों नीचो ।
बोरत न बारि ताहि जानि आपु सींचो ॥४॥
भावार्थः-- श्रीरामजीने अपने भलेपनसे ही मेरा भला कर दिया । ( मेरे कर्त्तव्यसे भला होनेकी क्या आशा थी ? ) क्योंकि मैं तो स्वामीके साथ बुराई करनेवाला हुँ; परन्तु मेरे स्वामी श्रीराम सेवकके हितकारी हैं ॥१॥
श्रीरामजीसे तो बड़ा कौन है और मुझसे छोटा कौन है ? उनके समान खरा कौन है और मेरे समान खोटा कौन है ? ॥२॥
संसार कहता है कि मैं ( तुलसीदास ) रामजीका गुलाम हूँ और मैं भी यह कहलवाता हूँ । ( वास्तवमें रामका सेवक न होकर भी मैं इस पदवीको स्वीकार कर लेता हूँ ) यह मेरा बड़ा भारी अपराध है, तो भी श्रीरामका मन मेरी तरफसे तनिक भी नहीं फिरा ॥३॥
हे तुलसी ! जैसे तिनका बहुत नीच होनेपर भी जलके मस्तकपर चढ़ जाता है, ( ऊपर उतराने लगता है ) परन्तु जल उसे अपने द्वारा ही सींचकर पाला - पोसा हुआ समझकर डुबोता नहीं । ( इसी प्रकार भगवान् श्रीरामजी समझते हैं ) ॥४॥