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श्रीसीता स्तुति १

विनय पत्रिका - श्रीसीता स्तुति १

विनय पत्रिकामे, भगवान् श्रीराम के अनन्य भक्त तुलसीदास भगवान् की भक्तवत्सलता व दयालुता का दर्शन करा रहे हैं।


राग केदारा

कबहुँक अंब, अवसर पाइ ।

मेरिऔ सुधि द्याइबी, कछु करुन - कथा चलाइ ॥१॥

दीन, सब अँगहीन, छीन, मलीन, अघी अघाइ ।

नाम लै भरै उदर एक प्रभु - दासी - दास कहाइ ॥२॥

बूझिहैं ' सो है कौन ', कहिबी नाम दसा जनाइ ।

सुनत राम कृपालुके मेरी बिगरिऔ बनि जाइ ॥३॥

जानकी जगजननि जनकी किये बचन सहाइ ।

तरै तुलसीदास भव तव नाथ - गुन - गन गाइ ॥४॥

भावार्थः-- हे माता ! कभी अवसर हो तो कुछ करुणाकी बात छोड़कर श्रीरामचन्द्रजीको मेरी भी याद दिला देना, ( इसीसे मेरा काम न जायगा ) ॥१॥

यों कहना कि एक अत्यन्त दीन, सर्व साधनोंसे हीन, मनमलीन, दुर्बल और पूरा पापी मनुष्य आपकी दासी ( तुलसी ) - का दास कहलाकर और आपका नाम ले - लेकर पेट भरता है ॥२॥

इसपर प्रभु कृपा करके पूछें कि वह कौन है, तो मेरा नाम और मेरी दशा उन्हें बता देना । कृपालु रामचन्द्रजीके इतना सुन लेनेसे ही मेरी सारी बिगड़ी बात बन जायगी ॥३॥

हे जगज्जननी जानकीजी ! यदि इस दासकी आपने इस प्रकार वचनोंसे ही सहायता कर दी तो यह तुलसीदास आपके स्वामीकी गुणावली गाकर भवसागरसे तर जायगा ॥४॥

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Last Updated : August 25, 2009

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