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विनयावली १८३

विनय पत्रिका - विनयावली १८३

विनय पत्रिकामे , भगवान् श्रीराम के अनन्य भक्त तुलसीदास भगवान् की भक्तवत्सलता व दयालुता का दर्शन करा रहे हैं।


राम ! रावरो नाम मेरो मातु - पितु है ।

सुजन - सनेही , गुरु - साहिब , सखा - सुहद ,

राम - नाम प्रेम - पन अबिचल बितु है ॥१॥

सतकोटि चरित अपार दधिनिधि मथि

लियो काढ़ि वामदेव नाम - घृतु है ।

नामको भरोसो - बल चारिहू फलको फल ,

सुमिरिये छाड़ि छल , भलो कृतु है ॥२॥

स्वारथ - साधक , परमारथ - दायक नाम ,

राम - नाम सारिखो न और हितु है ।

तुलसी सुभाव कही , साँचिये परैगी सही ,

सीतानाथ - नाम नित चितहूको चितु है ॥३॥

भावार्थः - हे श्रीरामजी ! आपका नाम ही मेरा माता - पिता , स्वजनसम्बन्धी , प्रेमी , गुरु , स्वामी , मित्र और अहैतुक हितकारी है । और आपके नामसे जो मेरा अनन्य प्रेम है , वही मेरा अटल धन है ॥१॥

शिवजीने सौ करोड़ चरित्ररुपी अगाध दधि - सागरको मथकर उससे राम - नामरुपी घी निकाला है । आपके नामका बल - भरोसा अर्थ , धर्म , काम और मोक्ष चारों फलोंका ( चरम ) फल है । कपटभाव छोड़कर इसीका स्मरण करना चाहिये यही सर्वोत्तम यज्ञ है ॥२॥

आपका नाम सभी सांसारिक स्वार्थोंका साधनेवाला एवं परमार्थ ( मोक्ष ) - का प्रदान करनेवाला है । श्रीरामनामके समान हित करनेवाला और कोई भी नहीं है । यह बात तुलसीने स्वभावसे ही कही है , अतएव सचमुच ही इसपर सही पड़ेगी । जानकीरमण श्रीरामका नाम चित्तका भी चित्त है ॥३॥

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Last Updated : November 13, 2010

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