राम राम, राम राम, राम राम, जपत ।
मंगल - मुद उदित होत, कलि - मल - छल छपत ॥१॥
कहु के लहे फल रसाल, बबुर बीज बपत ।
हारहि जनि जनम जाय गाल गूल गपत ॥२॥
काल, करम, गुन, सुभाउ सबके सीस तपत ।
राम - नाम - महिमाकी चरचा चले चपत ॥३॥
साधन बिनु सिद्धि सकल बिकल लोग लपत ।
कलिजुग बर बनिज बिपुल, नाम - नगर खपत ॥४॥
नाम सों प्रतीति - प्रीति हदय सुथिर थपत ।
पावन किये रावन - रिपु तुलसिहु - से अपत ॥५॥
भावार्थः- राम - नामके जपसे कल्याण और आनन्दका उदय होता है और कलियुगके पाप तथा छल - छिद्र छिप जाते हैं ॥१॥
बबूलका बीज बोकर आजतक किसने आमके फल पाये ? अतएव तू व्यर्थ गप्पें मारकर अपने ( दुर्लभ मनुष्य ) जन्मको नष्ट मत कर ( गप्पोंका फल तो दुर्गति ही होगा; इसलिये राम - नाम जप, इसीमें कल्याण है ॥२॥
काल, कर्म, गुण ( सत्त्व, रज और तम ) और स्वभाव - ये सभीके सिरोंपर तप रहे हैं, अर्थात् इनके प्रभावसे सभीको दुःख भोगना और कर्म करना पड़ता है; परन्तु श्रीराम - नामकी महिमाकी चर्चा आरम्भ होते ही ये सब दब जाते हैं, इनका कोई प्रभाव नहीं रह जाता ( इसलिये राम - नामका जप कर ) ॥३॥
लोग बिना ही साधनोंके सारी सिद्धियाँ पानेके लिये व्याकुल हैं; पर यह कब सम्भव है ? हाँ, कलियुगका ढेर - का -ढेर बनिज व्यापार, माल - मत्ता नाम नगरमें खप जाता है, अर्थात् कलियुगका पापसमूह राम - नामके प्रतापसे नष्ट हो जाता है ॥४॥
नाममें विश्वास और प्रेम करनेसे हदय भलीभाँति स्थिर शान्त हो जाता है । रामजीके नामने रावण - सरीखे शत्रु और तुलसी - सरीखे पतितको भी पावन कर दिया है ॥५॥