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विनयावली ६०

विनय पत्रिका - विनयावली ६०

विनय पत्रिकामे, भगवान् श्रीराम के अनन्य भक्त तुलसीदास भगवान् की भक्तवत्सलता व दयालुता का दर्शन करा रहे हैं।


राम राम, राम राम, राम राम, जपत ।

मंगल - मुद उदित होत, कलि - मल - छल छपत ॥१॥

कहु के लहे फल रसाल, बबुर बीज बपत ।

हारहि जनि जनम जाय गाल गूल गपत ॥२॥

काल, करम, गुन, सुभाउ सबके सीस तपत ।

राम - नाम - महिमाकी चरचा चले चपत ॥३॥

साधन बिनु सिद्धि सकल बिकल लोग लपत ।

कलिजुग बर बनिज बिपुल, नाम - नगर खपत ॥४॥

नाम सों प्रतीति - प्रीति हदय सुथिर थपत ।

पावन किये रावन - रिपु तुलसिहु - से अपत ॥५॥

भावार्थः- राम - नामके जपसे कल्याण और आनन्दका उदय होता है और कलियुगके पाप तथा छल - छिद्र छिप जाते हैं ॥१॥

बबूलका बीज बोकर आजतक किसने आमके फल पाये ? अतएव तू व्यर्थ गप्पें मारकर अपने ( दुर्लभ मनुष्य ) जन्मको नष्ट मत कर ( गप्पोंका फल तो दुर्गति ही होगा; इसलिये राम - नाम जप, इसीमें कल्याण है ॥२॥

काल, कर्म, गुण ( सत्त्व, रज और तम ) और स्वभाव - ये सभीके सिरोंपर तप रहे हैं, अर्थात् इनके प्रभावसे सभीको दुःख भोगना और कर्म करना पड़ता है; परन्तु श्रीराम - नामकी महिमाकी चर्चा आरम्भ होते ही ये सब दब जाते हैं, इनका कोई प्रभाव नहीं रह जाता ( इसलिये राम - नामका जप कर ) ॥३॥

लोग बिना ही साधनोंके सारी सिद्धियाँ पानेके लिये व्याकुल हैं; पर यह कब सम्भव है ? हाँ, कलियुगका ढेर - का -ढेर बनिज व्यापार, माल - मत्ता नाम नगरमें खप जाता है, अर्थात् कलियुगका पापसमूह राम - नामके प्रतापसे नष्ट हो जाता है ॥४॥

नाममें विश्वास और प्रेम करनेसे हदय भलीभाँति स्थिर शान्त हो जाता है । रामजीके नामने रावण - सरीखे शत्रु और तुलसी - सरीखे पतितको भी पावन कर दिया है ॥५॥

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Last Updated : March 22, 2010

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