जानकी - जीवन, जग - जीवन, जगत - हित,
जगदीस, रघुनाथ, राजीवलोचन राम ।
सरद - बिधु - बदन, सुखसील, श्रीसदन,
सहज सुंदर तनु, सोभा अगनित काम ॥१॥
जग - सुपिता, सुमातु, सुगुरु, सुहित, सुमीत,
सबको दाहिनो, दीनबन्धु, काहूको न बाम ।
आरतिहरन, सरनद, अतुलित दानि,
प्रनतपालु, कृपालु, पतित - पावन नाम ॥२॥
सकल बिस्व - बंदित, सकल सुर - सेवित,
आगम - निगम कहैं रावरेई गुनग्राम ।
इहै जानि तुलसी तिहारो जन भयो,
न्यारो कै गनिबो जहाँ गने गरीब गुलाम ॥३॥
भावार्थः-- हे श्रीरामजी ! आप श्रीजानकीजीके जीवन, विश्वके प्राण, जगतके हितकारी, जगतके स्वामी, रघुकुलके नाथ और कमलके समान नेत्रवाले हैं । आपका मुखमण्डल शरत्पूर्णिमाके चन्द्रमाके समान है, सुख प्रदान करना आपका स्वभाव है । लक्ष्मीजी सदा आपमें निवास करती हैं, आपका शरीर स्वाभाविक ही परम सुन्दर है, जिसकी शोभा असंख्य कामदेवोंके समान है ॥१॥
आप जगतके सुखकारी पिता, माता, गुरु, हितकारी, मित्र और सबके अनुकूल हैं । आप दीनोंके बन्धु हैं, परंतु बुरा किसीका भी नहीं करते । आप विपत्तिके हरनेवाले, शरण देनेवाले, अतुलनीय दानी, शरणागत - रक्षक और कृपालु हैं । आपका राम - नाम पतितोंको पावन कर देता है ॥२॥
सारा विश्व आपकी वन्दना करता है, समस्त देवता आपकी सेवा करते हैं और सभी वेद - शास्त्र आपके ही गुण - समूहोंका गान करते हैं । यह सब जानकर तुलसीदास आपका गुलाम बना है, अब बतलाइये आप इसे अलग समझेंगे या गरीब गुलामोंकी नामावलीमें गिनेंगे ॥३॥