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श्रीराम स्तुति ५

विनय पत्रिका - श्रीराम स्तुति ५

विनय पत्रिकामे, भगवान् श्रीराम के अनन्य भक्त तुलसीदास भगवान् की भक्तवत्सलता व दयालुता का दर्शन करा रहे हैं।


देव

जानकीनाथ, रघुनाथ, रागादि - तम - तरणि, तारुण्यतनु, तेजधामं ।

सच्चिदानंद, आनंदकंदाकरं, विश्व - विश्राम, रामाभिरामं ॥१॥

नीलनव - वारिधर - सुभग - शुभकांति, कटि पीत कौशेय वर वसनधारी ।

रत्न - हाटक - जटित - मुकुट - मंडित - मौलि, भानु - शत - सदृश उद्योतकारी ॥२॥

श्रवण कुंडल, भाल तिलक, भ्रूरुचिर अति, अरुण अंभोज लोचन विशालं ।

वक्र - अवलोक, त्रैलोक - शोकापहं, मार - रिपु - हदय - मानस - मरालं ॥३॥

नासिका चारु सुकपोल, द्विज वज्रदुति, अधर बिंबोपमा, मधुरहासं ।

कंठ दर, चिबुक वर, वचन गंभीरतर, सत्य - संकल्प, सुरत्रास - नासं ॥४॥

सुमन सुविचित्र नव तुलसिकादल - युतं मृदुल वनमाल उर भ्राजमानं ।

भ्रमत आमोदवश मत्त मधुकर - निकर, मधुरतर मुखर कुर्वन्ति गानं ॥५॥

सुभग श्रीवत्स, केयूर, कंकण, हार, किंकिणी - रटनि कटि - तट रसालं ।

वाम दिसि जनकजासीन - सिंहासनं कनक - मृदुवल्लिवत तरु तमालं ॥६॥

आजानु भुजदंड कोदंड - मंडित वाम बाहु, दक्षिण पाणि बाणमेकं ।

अखिल मुनि - निकर, सुर, सिद्ध, गंधर्व वर नमत नर नाग अवनिप अनेकं ॥७॥

अनघ, अविछिन्न, सर्वज्ञ, सर्वेश, खलु सर्वतोभद्र - दाताऽसमाकं ।

प्रणतजन - खेद - विच्छेद - विद्या - निपुण नौमि श्रीराम सौमित्रिसाकं ॥८॥

युगल पदपद्म सुखसद्म पद्मालयं, चिह्न कुलिशादि शोभति भारी ।

हनुमंत - हदि विमल कृत परममंदिर, सदा दासतुलसी - शरण शोकहारी ॥९॥

भावार्थः-- जानकीनाथ श्रीरघुनाथजी राग - द्वेषरुपी अन्धकारका नाश करनेके लिये सूर्यरुप, तरुण शरीरवाले, तेजके धाम, सच्चिदानन्द, आनन्दकन्दकी खानि, संसारको शान्ति देनेवाले, परम सुन्दर हैं ॥१॥

जिनकी नवीन नील सजल मेघके समान सुन्दर और शुभ कान्ति है, जो कटि - तटमें सुन्दर रेशमी पीताम्बर धारण किये हैं, और जिनके मस्तकपर सैकड़ों सूर्योंके समान प्रकाश करनेवाला रत्नजड़ित सुन्दर सुवर्ण - मुकुट शोभित हो रहा है ॥२॥

जो कानोंमें कुण्डल पहिने, भालपर तिलक लगाये, अत्यन्त सुन्दर भ्रुकुटि तथा लाल कमलके समान बड़े - बड़े नेत्रोंवाले, तिरछी चितवनसे देखते हुए, तीनों लोकोंका शोक हरनेवाले और कामारि श्रीशिवजीके हदयरुपी मानसरोवरमें विहार करनेवाले हंसरुप हैं ॥३॥

जिनकी नासिका बड़ी सुन्दर हैं, मनोहर कपोल हैं, दाँत हीरे - जैसे चमकदार हैं, होठ लाल - लाल बिम्बाफलके समान हैं, मधुर मुसकान हैं, शंखके समान कण्ठ और परम सुन्दर ठोढ़ी हैं । जिनके वचन बड़े ही गम्भीर होते हैं, जो सत्यसंकल्प और देवताओंके दुःखोंका नाश करनेवाले हैं ॥४॥

रंग - बिरंगे फूलों और नये तुलसी - पत्रोंकी कोमल वनमाला जिनके हदयपर सुशोभित हो रही है, उस मालापर सुगन्धके वश मतवाले भौंरोका समूह मधुर गुंजार करता हुआ उड़ रहा है ॥५॥

जिनके हदयपर सुन्दर श्रीवत्सका चिहन है, बाहुओंपर बाजूबन्द, हाथोंमें कंकण और गलेमें मनोहर हार शोभित हो रहा है, कटि - देशमें सुन्दर तागड़ीका मधुर शब्द हो रहा है । सिंहासनपर वाम भागमें श्रीजानकीजी विराजमान हैं, जो तमालवृक्षके समीप कोमल सुवर्ण - लता - सी शोभित हो रही हैं ॥६॥

जिनके भुजदण्ड घुटनोंतक लंबे हैं; बायें हाथमें धनुष और दाहिने हाथमें एक बाण हैं; जिनको सम्पूर्ण मुनिमण्डल, देवता, सिद्ध, श्रेष्ठ, मनुष्य, नाग और अनेक राजामहाराजागण प्रणाम करते हैं ॥७॥

जो पापरहित, अखण्ड, सर्वज्ञ, सबके स्वामी और निश्चयपूर्वक हमलोगोंको कल्याण प्रदान करनेवाले हैं; जो शरणागत भक्तोंके कष्ट मिटानेकी कलामें सर्वथा निपुण हैं, ऐसे लक्ष्मणजीसहित श्रीरामचन्द्रजीको मैं प्रणाम करता हूँ ॥८॥

जिनके दोनों चरणकमल आनन्दके धाम और कमला ( लक्ष्मीजी ) - के निवासस्थान हैं अर्थात् लक्ष्मीजी सदा उन चरणोंकी सेवामें लगी रहती हैं । वज्र आदि ४८ चिह्नोंसे जो अत्यन्त शोभा पा रहे हैं जिन्होंने भक्तवर श्रीहनुमानजीके निर्मल हदयको अपना श्रेष्ठ मन्दिर बना रखा है यानी श्रीहनुमानजीके हदयमें यह चरणकमल सदा बसते हैं, ऐसे शोक हरनेवाले श्रीरामजीके चरणोंकी शरणमें यह तुलसीदास हैं ॥९॥

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Last Updated : August 25, 2009

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