राम जपु जीह ! जानि , प्रीति सों प्रतीत मानि ,
रामनाम जपे जैहै जियकी जरनि ।
रामनामसों रहनि , रामनामकी कहनि ,
कुटिल कलि - मल - सोक - संकट - हरनि ॥१॥
रामनामको प्रभाउ पूजियत गनराउ ,
कियो न दुराउ , कही आपनी करनि ।
भव - सागरको सेतु , कासीहू सुगति हेतु ,
जपत सादर संभु सहित घरनि ॥२॥
बालमीकि ब्याध हे अगाध - अपराध - निधि ,
' मरा ' ' मरा ' जपे पूजे मुनि अमरनि ।
रोक्यो बिंध्य , सोख्यो सिंधु घटजहुँ नाम - बल ,
हार्यो हिय , खारो भयो भूसुर - डरनि ॥३॥
नाम - महिमा अपार , सेष - सुक बार - बार
मति - अनुसार बुध बेदहू बरनि ।
नामरति - कामधेनु तुलसीको कामतरु ,
रामनाम है बिसोह - तिमिर - तरनि ॥४॥
भावार्थः - हे जीभ ! राम - नामका जप कर , राम - नामके ( तत्त्वको ) जान और प्रेमपूर्वक उसमें विश्वास कर । एक राम - नामके जपसे तेरे हदयके ( तीनों ) ताप शान्त हो जायँगे । राम - नामके परायण हो और राम - नामहीका कथन किया कर । ( इस प्रकार नामकी शरणागति ) कुटिल - कलियुगके पापों , दुःखों और संकटोंको हरनेवाली है ॥१॥
राम - नामके प्रभावसे गणेश ( सर्वप्रथम ) पूजे जाते हैं । गणेशजीने अपनी करनीको स्वयं कहा है , कुछ छिपाकर नहीं रखा । यह राम - नाम्क संसाररुपी समुद्रका पुल है ( इसपर चढ़कर भक्तजन सहज ही भवसागरसे तर जाते हैं ) । काशीमें भगवान शंकर भी पार्वतीके सहित जीवोंको मोक्ष देनेके लिये राम - नामको जपा करते हैं ॥२॥
वाल्मीकि व्याधके अनन्त पाप थे , किन्तु उलटा नाम ' मरा - मरा ' जपकर वे ऐसे हो गये कि मुनियों और देवताओंने भी उनकी पूजा की । अगस्त्य ऋषिने भी इसी रामनामके बलपर विन्ध्याचलपर्वतको रोक लिया एवं समुद्रको सुखा दिया था । पीछे वह समुद्र उन्हीं ब्राह्मण ( अगस्त्य ) - के भयसे हदयमें हार मानकर खारा हो गया ॥३॥
राम - नामकी अपार महिमा है । शेष , शुकदेव , वेद और पण्डितोंने बार - बार अपनी बुद्धिके अनुसार इसका वर्णन किया है । राम नामस्से प्रीति होना तुलसीदासके लिये कामधेनु और कल्पवृक्ष ही है ( उसे तो इसी राम नामसे मनचाहा दुर्लभ पद मिला है ) । अधिक क्या , यह राम - नाम अज्ञानके अन्धकारको दूर करनेके लिये साक्षात् सूर्य है ॥४॥