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श्रीराम स्तुति ७

विनय पत्रिका - श्रीराम स्तुति ७

विनय पत्रिकामे, भगवान् श्रीराम के अनन्य भक्त तुलसीदास भगवान् की भक्तवत्सलता व दयालुता का दर्शन करा रहे हैं।


देव

सकल सौभाग्यप्रद - निधि, सर्व, सर्वेश, सर्वाभिरामं ।

शर्व - हदि - कंज - मकरंद - मधुकर रुचिर - रुप, भूपालमणि नौमि रामं ॥१॥

सर्वसुख - धाम गुणग्राम, विश्रामपद, नाम सर्वसंपदमति पुनीतं ।

निर्मलं शांत, सुविशुद्ध, बोधायतन, क्रोध - मद - हरण, करुणा - निकेतं ॥२॥

अजित, निरुपाधि, गोतीतमव्यक्त, विभुमेकमनवद्यमजमाद्वितीयं ।

प्राकृतं, प्रकट परमातमा, परमहित, प्रेरकानंद वंदे तुरीयं ॥३॥

भूधरं सुन्दरं, श्रीवरं, मदन - मद - मथन सौन्दर्य - सीमातिरम्यं ।

दुष्प्राप्य, दुष्प्रेक्ष्य, दुस्तर्क्य, दुष्पार, संसारहर, सुलभ, मृदुभाव - गम्यं ॥४॥

सत्यकृत, सत्यरत, सत्यव्रत, सर्वदा, पुष्ट, संतुष्ट, संकष्टहारी ।

धर्मवर्मनि ब्रह्मकर्मबोधैक, विप्रपूज्य, ब्रह्मण्यजनप्रिय, मुरारी ॥५॥

नित्य, निर्मम, नित्यमुक्त, निर्मान, हरि, ज्ञानघन, सच्चिदानंद मूलं ।

सर्वरक्षक सर्वभक्षकाध्यक्ष, कूटस्थ, गूढार्चि, भक्तानुकूलं ॥६॥

सिद्ध - साधक - साध्य, वाच्य - वाचकरुप, मंत्र - जापक - जाप्य, सृष्टि - स्रष्टा ।

परम कारण, कंजनाभ, जलदाभतनु, सगुण, निर्गुण, सकल दृश्य - द्रष्टा ॥७॥

व्योम - व्यापक, विरज, ब्रह्म, वरदेश, वैकुंठ, वामन विमल ब्रह्मचारी ।

सिद्ध - वृंदारकावृंदवंदित सदा, खंडि पाखंड - निर्मूलकारी ॥८॥

पूरनानंदसंदोह, अपहरन संमोह - अज्ञान, गुण - सन्निपातं ।

बचन - मन - कर्म - गत शरण तुलसीदास त्रास - पाथोधि इव कुंभजातं ॥९॥

भावार्थः-- समस्त सौभाग्यके देनेवाले, सब प्रकारसे कल्याणके भण्डार, विश्वरुप, विश्वके ईश्वर, सबको सुख देनेवाले, शिवजीके हदय - कमलके मकरन्दको पान करनेके लिये भ्रमररुप, मनोहर रुपवान् एवं राजाओंमें शिरोमणि श्रीरामचन्द्रजीको मैं प्रणाम करता हूँ ॥१॥

हे श्रीरामजी ! आप सब सुखोंके धाम, गुणोंकी राशि और परमशान्ति देनेवाले हैं । आपका नाम समस्त पदार्थोंको देनेवाला तथा बड़ा ही पवित्र हैं । आप शुद्ध, शान्त, अत्यन्त निर्मल, ज्ञानस्वरुप, क्रोध और मदका नाश करनेवाले तथा करुणाके स्थान हैं ॥२॥

आप सबसे अजेय, उपाधिरहित, मन - इन्द्रियोंसे परे, अव्यक्त, व्यापक, एक, निर्विंकार, अजन्मा और अद्वितीय हैं । परमात्मा होनेपर भी प्रकृतिको साथ लेकर प्रकट होनेवाले, परम हितकारी, सबके प्रेरक, अनन्त और निर्गुणरुप हैं । ऐसे श्रीरामचन्द्रजीको मैं प्रणाम करता हूँ ॥३॥

आप पृथ्वीको धारण करनेवाले, सुन्दर, लक्ष्मीपति, सुन्दरतामें कामदेवका गर्व खर्व करनेवाले, सौन्दर्यकी सीमा और अत्यन्त ही मनोहर हैं । आपको प्राप्त करना बड़ा कठिन हैं, आपके दर्शन बड़े कठिन हैं, तर्कसे कोई आपको नहीं जान सकता, आपकी लीलाका पार पाना बड़ा कठिन हैं । आप आपको नहीं जान सकता, आपकी लीलाका पार पाना बड़ा कठिन हैं । आप अपनी कृपासे आवागमनरुप संसारके हरनेवाले, भक्तोंको सहजहीमें दर्शन देनेवाले और प्रेम तथा दीनतासे प्राप्त होनेवाले हैं ॥४॥

आप सत्यको उत्पन्न करनेवाले, सत्यमें रहनेवाले, सत्य - संकल्प सदा ही पुष्ट - दिव्य शक्ति - सामर्थ्यवान्, सन्तुष्ट और महान् कष्टोंके हरनेवाला हैं । धर्म आपका कवच है, आप ब्रह्म और कर्मके ज्ञानमें अद्वितीय हैं, ब्राह्मणोंके पूज्य हैं, ब्राह्मणों और भक्तोंके प्यारे हैं तथा मुर दानवके मारनेवाले हैं ॥५॥

हे हरे ! आप नित्य, ममतारहित, नित्यमुक्त, मानरहित, पापोंके हरनेवाले, ज्ञानस्वरुप, सच्चिदानन्दघन और सबके मूल कारण हैं । आप सबके रक्षक, सबको मृत्युरुपसे भक्षण करनेवाले यमराजके स्वामी, कूटस्थ, गूढ़ तेजवाले और भक्तोंपर कृपा करनेवाले हैं ॥६॥

आप ही सिद्धि साधक और साध्य हैं, आप ही वाच्य और वाचक हैं, आप ही मन्त्र, जापक और जाप्य तथा आप ही सृष्टि और आप ही स्रष्टा हैं । आप परम कारण हैं । आपकी नाभिसे कमल निकला है । आपका शरीर मेघके समान श्यामसुन्दर है । सगुण - निर्गुण दोनों ही आप हैं, यह समस्त दृश्यरुप संसार भी आप हैं और उसके द्रष्टा भी आप ही हैं ॥७॥

आप आकाशके समान सर्वव्यापी, रागरहित, ब्रह्म और वर देनेवाले देवताओंके स्वामी हैं । आपका नाम वैकुण्ठ और विमल वामन ब्रह्मचारी है । सिद्ध और देवसमूह सदा आपकी वन्दना किया करते हैं, आप पाखण्डका खण्डन कर उसे निर्मूल करनेवाले हैं ॥८॥

आप पूर्ण आनन्दकी राशि, अविवेक, अज्ञान और सत्त्व, रज, तम गुणोंके त्रिदोषको हरनेवाले हैं । यह तुलसीदास वचन, मन और कर्मसे आपकी शरण पड़ा हैं; इसके भव - भयरुपी समुद्रके सोखनेके लिये आप ही साक्षात् अगस्त्य ऋषिके समान हैं ॥९॥

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Last Updated : August 25, 2009

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