जयति मंगलागार, संसारभारापहर, वानराकारविग्रह पुरारी ।
राम - रोषानल - ज्वालमाला - मिष ध्वांतचर - सलभ - संहारकारी ॥१॥
जयति मरुदंजनामोद - मंदिर, नतग्रीव सुग्रीव - दुःखैकबंधो ।
यातुधानोद्धत - क्रुद्ध - कालाग्निहर, सिद्ध - सुर - सज्जनानंद - सिंधो ॥२॥
जयति रुद्राग्रणी, विश्व - वंद्याग्रणी, विश्वविख्यात - भट - चक्रवर्ती ।
सामगाताग्रणी, कामजेताग्रणी, रामहित, रामभक्तानुवर्ती ॥३॥
जयति संग्रामजय, रामसंदेसहर, कौशला - कुशल - कल्याणभाषी ।
राम - विरहार्क - संतप्त - भरतादि - नरनारि - शीतलकरण कल्पशाषी ॥४॥
जयति सिंहासनासीन सीतारमण, निरखि, निर्भरहरष नृत्यकारी ।
राम संभ्राज शोभा - सहित सर्वदा तुलसिमानस - रामपुर - विहारी ॥५॥
भावार्थः-- हे हनुमानजी ! तुम्हारी जय हो । तुम कल्याणके स्थान, संसारज्के भारको हरनेवाले, बन्दरके आकारमें साक्षात् शिवस्वरुप हो । तुम राक्षसरुपी पतंगोंको भस्म करनेवाली श्रीरामचन्द्रजीके क्रोधरुपी अग्निकी ज्वालामालाके मूर्तिमान् स्वरुप हो ॥१॥
तुम्हारी जय हो । तुम पवन और अंजनी देवीके आनन्दके स्थान हो । नीची गर्दन किये हुए, दुःखी सुग्रीवके दुःखमें तुम सच्चे बन्धुके समान सहायक हुए थे । तुम राक्षसोंके कराल क्रोधरुपी प्रलयकालकी अग्निका नाश करनेवाले और सिद्ध, देवता तथा सज्जनोंके लिये आनन्दके समुद्र हो ॥२॥
तुम्हारी जय हो । तुम एकादश रुद्रोंमें और जगत्पूज्य ज्ञानियोंमें अग्रगण्य हो, संसारभरके शूरवीरोंके प्रसिद्ध सम्राट हो । तुम सामवेदका गान करनेवालोंमें और कामदेवको जीतनेवालोंमें सबसे श्रेष्ठ हो । तुम श्रीरामजीके हितकारी और श्रीराम - भक्तोंके साथ रहनेवाले रक्षक हो ॥३॥
तुम्हारी जय हो । तुम संग्राममें विजय पानेवाले, श्रीरामजीका सन्देशा ( सीताजीके पास ) पहुँचानेवाले और अयोध्याका कुशल - मंगल ( श्रीरघुनाथजीसे ) कहनेवाले हो । तुम श्रीरामजीके वियोगरुपी सूर्यसे जलते हुए भरत आदि अयोध्यावासी नर - नारियोंका ताप मिटानेके लिये कल्पवृक्ष हो ॥४॥
तुम्हारी जय हो । तुम श्रीरामजीको राज्य - सिंहासनपर विराजमान देख, आनन्दमें विह्वल होकर नाचनेवाले हो । जैसे श्रीरामजी अयोध्यामें सिंहासनपर विराजित हो शोभा पा रहे थे, वैसे ही तुम इस तुलसीदासकी मानसरुपी अयोध्यामें सदा विहार करते रहो ॥५॥