राग गौरी
मंगल - मूरति मारुत - नंदन । सकल - अमंगल - मूल - निकंदन ॥१॥
पवनतनय संतन - हितकारी । हदय बिराजत अवध - बिहारी ॥२॥
मातु - पिता, गुरु, गनपति, सारद । सिवा - समेत संभु, सुक, नारद ॥३॥
चरन बंदि बिनवौं सब काहू । देहु रामपद - नेह - निबाहू ॥४॥
बंदौं राम - लखन - बैदेही । जे तुलसीके परम सनेही ॥५॥
भावार्थः-- पवनकुमार हनुमानजी कल्याणकी मूर्ति हैं । वे सारी बुराइयोंकी जड़ काटनेवाले हैं ॥१॥
पवनके पुत्र हैं, संतोंका हित करनेवाले हैं । अवधविहारी श्रीरामजी सदा इनके हदयमें विराजते हैं ॥२॥
इनके तथा माता - पिता, गुरु, गणेश, सरस्वती, पार्वतीसहित शिवजी, शुकदेवजी, नारद ॥३॥
इन सबके चरणोंमें प्रणाम करके मैं यह विनती करता हूँ कि श्रीरघुनाथजीके चरण - कमलोंमें मेरा प्रेम सदा एक - सा निबह रहे, यह वरदान दीजिये ॥४॥
अन्तमें मैं श्रीराम, लक्ष्मण और जानकीजीको प्रणाम करता हूँ, जो तुलसीदासके परमप्रेमी और सर्वस्व हैं ॥५॥