श्री शुचिजनु: ( कार्तिकेय ) स्तुति:
स्वामि श्री भारतीकृष्णतीर्थ यांनी जी देवदेवतांवी स्तुती केली आहे, अशी क्वचितच् इतरांनी कोणी केली असेल.
इभवरवदनप्रियतरसहज जगदिनतनुभू: शुचिजनुरव माम् ॥१॥
पदनतसकलेप्सितवरदनते सकरुनहृदय शुचिजनुरव माम् ॥२॥
सुरपतितनुजामुखकमलरवे इभमुखदपद शुचिजनुरव माम् ॥३॥
न्तजनमुददान्वत उडुरमण जितमतिसुलभ शुचिजनुरव माम् ॥४॥
हिमकरशिशुधृत्प्रजनिततनुक फणिपतिविनुतशुचिजनुरव माम् ॥५॥
पदनतजनतावरततिदपद निखिलविदतुल शुचिजनुरव माम् ॥६॥
नमदखिलविधाभ्युदयदचरण त्रिदिवभवविनुत शुचिजनुरव माम् ॥७॥
सुलभितविभवस्वचरणनमन सुरपतिजनिप शुचिजनुरव माम् ॥८॥
निगडितसरसीरुहनिजभवन रसमितवदन शुचिजनुरव माम् ॥९॥
निटिलगदिविजानततनुजनन अतिमृदुहृदय शुचिजनुरव माम् ॥१०॥
निजतनुसुषमाविवशितहरिभू: मुखजितजलज शुचिजनुरव माम् ॥११॥
रसमुखसुलभस्पृशिनय वितत हरिभुविनिरत शुचिजनुरव माम् ॥१२॥
स्थिरतरकुशलस्पृशिरतहृदया - पुरुतरधिषण शुचिजनुरव माम् ॥१३॥
यमिमणिकुलपाकृतिधृतिरुचिर परपदनिरत शुचिजनुरव माम् ॥१४॥
हरिमुखदनुजप्रहरणनिपुण जितविधुतनुरुक् शुचिजनुरव माम् ॥१५॥
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Last Updated : November 11, 2016
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