श्रीद्वारकालक्ष्मीनारायणस्तोत्रम्
स्वामि श्री भारतीकृष्णतीर्थ यांनी जी देवदेवतांवी स्तुती केली आहे, अशी क्वचितच् इतरांनी कोणी केली असेल.
स्ववशगमतिजितचित्तोद्भवमुखरिपुसुलभाङ्घ्रे ।
अव कुशपुरपतिलक्ष्मीमुरहर तदितरदूर ॥१॥
अविरतजननजरारुड्मृतिमुखशमननिषक्त ।
अव कुशपुरपतिलक्ष्मीमुरहर हरिबलपूज्य ॥२॥
सुरगुरुधनपतिजिष्णुस्ववचनधनततिदार्च ।
अव कुशपुरपतिलक्ष्मीमुरहर निरुपमशक्ते ॥३॥
पदनतजनकरुणाम्भोनिधिनिजहृदयसरोज ।
अव कुशपुरपतिलक्ष्मीमुरहर सहजनिदुर्ग ॥४॥
श्रितजनकृतिखिलाम्भोव्रजजलनिधिघटजात ।
अव कुशपुरततिलक्ष्मीमुरहर गजमुखदयित ॥५॥
तनुरुचिलवजितजाम्बूनदनवजलनिधिदर्प ।
अव कुशपुरपतिलक्ष्मीमुरहर फणिपतितल्प ॥६॥
सुरमुनिशुकमुखगीतस्वविभवचरणसरोज ।
अव कुशपुरपतिलक्ष्मीमुरहर परमपदार्थ ॥७॥
अरिदरमुखधरहस्ताम्बुजधृतवरद भयघ्न।
अव कुशपुरपतिलक्ष्मीमुरहर सुरकरपूज ॥८॥
स्वकरुणकुसुमसवित्रीसुरुचिरतनुपरिरब्ध ।
अव कुशपुरपतिलक्ष्मीमुरहर विशदिततत्त्व ॥९॥
निरवधिजलनिधिनीवी क्षितिपतिपदकमलाले ।
अव कुशपुरपतिलक्ष्मीमुरहर भुवनततीश ॥१०॥
अगणितसुररिपुपूगान्तकरथपदधरहस्त ।
अव कुशपुरपतिलक्ष्मीमुरहर हृतनमदार्ते ॥११॥
जितमतिविकृतिनिकायीकृतपदरतनिकुरुम्ब ।
अव कुशपुरपतिलक्ष्मीमुरहर सरसिजनेत्र ॥१२॥
कमलजभवविधिफालोद्भवहरिमुखकलिताङ्घ्रे ।
अव कुशपुरपतिलक्ष्मीमुरहर सुमशरतात ॥१३॥
स्मृतिलवहृतनिजसर्व श्रमततिपदवनजात् ।
अव कुशपुरपतिलक्ष्मीमुरहर शमसुखदायिन् ॥१४॥
परिमितिविरहितमन्तुव्रजसहनिरुपमचित्त ।
अव कुशपुरपतिलक्ष्मीमुरहर यममुखभीध्न ॥१५॥
N/A
References : N/A
Last Updated : November 11, 2016
TOP