श्रीगुरुस्तोत्रम्
स्वामि श्री भारतीकृष्णतीर्थ यांनी जी देवदेवतांवी स्तुती केली आहे, अशी क्वचितच् इतरांनी कोणी केली असेल.
निजपादनीरजनियुग्म -
निरतजनतामरद्रुमम ॥
संसृतिसकलभीतिहर -
स्वप्दाम्बुजातयुगलं भजे गुरुम् ॥१॥
भयनाशसर्ववरदान -
लसितनिजपाणिपङ्कजम् ॥
चण्डकिरणसवर्णपटा -
वृतहाटकाभवपुषं भजे गुरुम् ॥२॥
चरणाम्बुजातभवधूलि -
लवरतमनोsम्बुजन्मनाम् ॥
काङ्क्षितनिखिलवस्तुतति -
स्पृशिसक्तचित्तजलजं भजे गुरुम् ॥३॥
विजेतेन्द्रियालिचयनम्य -
निजचरणनीरसंभवम् ॥
आश्रितजनकृपाप्रमुखा -
खिलरम्यसद्गुणनिधिं भजे गुरुम् ॥४॥
विधिपद्मनाभविधुचूड -
मुखनिखिलनिर्जराकृतिम् ॥
संनतजनकृतान्तमुखा -
खिलसाध्वसघ्नचरणं भजे गुरुम् ॥५॥
कलिकल्मषाधजलराशि -
निपतितनमत्कृपार्णवम् ॥
मस्करिमणिनिकायनुत -
स्वपदप्रभावकणिकं भजे गुरुम् ॥६॥
त्रिदशालयस्थललनादि ( स्य ) -
मु ( सु ) खविमुखमानसाम्बुजम् ॥
निर्जितकनकवर्णतनुं
कनकादिदापनचणं भजे गुरुम् ॥७॥
भवनामपाररहिताब्धि -
पतितजनपारदस्मृतिम् ॥
भक्तजनजनिकोटिकृता -
खिलपापदग्धृनमनं भजे गुरुम् ॥८॥
अधकष्टमुख्यपवनाशि -
निकरविनतातनूभवम् ॥
संयमपिशुनदण्डलस -
ज्जपमालिकाञ्चितकरं भजे गुरुम् ॥९॥
कणभुग्दृगङ्घ्रिमनुजाज -
मुखनयकदम्बबोधदम् ॥
कष्टनिकरहृतीष्टतति -
स्पृशिसक्तपादरजसं भजे गुरुम् ॥१०॥
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Last Updated : November 11, 2016
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