ब्रह्मोवाच-
स्तो त्र यो
गः-१
- श्रीवामनस्तवः
२४. श्रीवामनस्तवः
( वामन, अ. ३० )
जयाघोश जयाजेय जय सर्वगुरो हरे ॥
जन्ममृत्युजरातीत जयानन्त जयाच्युत ॥ १८ ॥
जयाजित जयाशेष जयाव्यक्तस्थिते जय ॥
परमार्थार्थसर्वज्ञ ज्ञानज्ञेयार्थनिश्चित ॥ १९ ॥
जयाशेषजगत्साक्षिञ्जगत्कत्तंजंगद्गुरो ॥
जगतोऽजगतश्चेश स्थितौ पालयसे जय ॥ २० ॥
जयाखिल जयाशेष जय सर्वहृदिस्थित ||
जयादिमध्यान्तमय सर्वज्ञानमयोत्तम ॥ २१ ॥
मुमुक्षुभिरनिर्देश्य नित्यहृष्ट जयेश्वर ॥
योगिभिर्मुक्तकामंस्तु दमादिगुणभूषण ॥ २२ ॥
जयातिसूक्ष्मदुर्ज्ञेय जगन्मूल जगन्मय ॥
जय सूक्ष्मातिसूक्ष्म त्वं जय योगिनतीन्द्रिय ॥ २३ ॥
जय स्वमायायोगस्य शेषभोगशयाक्षर ||
जयंकदंष्ट्राप्रान्तेन समुद्धृतवसुन्धर ॥ २४ ॥
नृकेसरिन्सुरारातिवक्षःस्थलविदारण ||
सांप्रतं जय विश्वात्मन्मायावामन केशव ॥ २५ ॥
स्वमायापटलच्छन्नजगद्धातर्जनार्दन ॥
जयाचिन्त्य जयानेकस्वरूपंकनिघे प्रभो ॥ २६ ॥
वर्द्धस्व वद्धितानेकविकारप्रकृते हरे ॥
त्वयैषा जगती शेषसंस्थिता धर्मपद्धतिः ॥ २७ ॥
न त्वामहं न चेशानो नेन्द्रायास्त्रिदशा हरे ||
ज्ञातुमीशा न ऋषयः सनकाद्या न योगिनः ॥ २८ ॥
त्वं मायापटसंवोतो जगत्यत्र जगत्पते ॥
कस्त्वां वेत्स्यति सर्वेश त्वत्प्रसादं विना नरः ॥ २९ ॥
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