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Puran Kavya Stotra Sudha - Page 156

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का व्य यो गः – मोहिनी वर्णनम्
क्षोणमध्यश्चारुदंतः प्रमत्तगजगंधनः ॥
प्रफुल्लपद्मपत्राक्षः केशर घ्राणतर्पणः ॥ २७ ॥
कंबुग्रीवो मीनकेतुः प्रांशुर्मकरवाहनः ||
पंचपुष्पायुधो वेगी पुष्पकोदंडमंडितः ॥ २८ ॥
कांतः कटाक्षपातेन भ्रामयन्नयनद्वयम् ||
सुगंधिमारुतो तात शृंगाररससेवितः || २९ ||
ब्रह्मा उवाच -
अनेन त्वं स्वरूपेण पुष्पबाणैश्च पंचभिः ||
मोहयन्पुरुषांस्त्रींच कुरु सृष्टि सनातनीम् ॥ ३७ ॥
१६. मोहिनीवर्णनम्
(ब्रह्माण्ड, उत्तरभाग, १०.)
१४१
[God Visņu
is said to have assumed the form of the
beautiful Moihnī. Even Siva felt enamoured of her. Here
is the description of her beauty. ]
[ शर्वोऽपि सर्वतश्चक्षुर्मुहुर्व्यापारयन्क्वचित् ॥
अदृष्टपूर्वमाराममभिरामं व्यलोकयत् ॥ ५०
विकसत्कुसुम श्रेणी विनोदिमधुपालिकम् ||
चंपकस्तवकामोदसुरभीकृतदिक्तटम् ॥ ५१ ॥
माकन्दवृन्दमाध्वीकमाद्यदुल्लोलकोकिलम् ॥
अशोकमण्डलीकांडसतांडव शिखण्डिकम् ॥ ५२ ॥
भंगालिन वझंकार जितवल्लकिनिस्वनम् ॥
पाटलोदारसौरभ्यपाटलीकुसुमोज्ज्वलम् ॥ ५३॥
तमालतार्लाहतालकृतमालाविलासितम् ॥
पर्यन्तदोघिकादीर्घपङ्कजश्रीपरिष्कृतम् ॥ ५४॥
वातपातचलच्चा रुपल्लवोत्फुल्लपुष्पकम् ||
सन्तानप्रसवामोदसन्तानाधिकवासितम्
तत्र सर्वत्र पुष्पाढचे सर्वलोकमनोहरे ॥
पारिजाततरोर्मूले कान्ता काचिददृश्यत ॥ ५६ ॥]
॥ ५५ ॥

Note: Text on this page was transliterated using variery of software techniques. While we perfect artifical intelligence used, the texts may not be accurate. Learn more.
Last Updated : September 23, 2022

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