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Puran Kavya Stotra Sudha - Page 180

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स्तो त्र यो गः--
-विष्णुस्तवनम्
जय जन्मद जन्मस्थ परमात्मन्नमोऽस्तु ते ॥
जय मुक्तिद मुक्तिस्त्वं जय मुक्तिद केशव ॥ ३५ ॥
जय लोकद लोकेश जय पापविनाशन ॥
जय वत्सल भक्तानां जय चक्रघृते नमः ॥ ३६॥
जय मानद मानस्त्वं जय लोकनमस्कृत ॥
जय धर्मव धर्मस्त्वं जय संसारपारग ॥ ३७ ॥
जय अन्नद अन्नं त्वं जय वाचस्पते नमः ॥
जय शक्तिद शक्तिस्त्वं जय जैत्रवरप्रद ॥ ३८ ॥
जय यज्ञद यज्ञस्त्वं जय पद्मदलेक्षण ||
जय दानद दानं त्वं जय कैटभसूदन ॥ ३९ ॥
जय कीर्तिद कोर्तिस्त्वं जय मूर्तिद मूर्तिघृक् ||
जय सौख्यद सौख्यात्मञ्जय पावनपावन ॥ ४० ॥
जय शान्तिद शान्तिस्त्वं जय शकरसंभव ॥
जय पानद पानस्त्वं जय ज्योतिःस्वरूपिणे ॥ ४१ ॥
जय वामन वित्तेश जय घूमपताकिने ॥
जय सर्वस्य जगतो दातृमूर्ते नमोऽस्तु ते ॥ ४२ ॥
त्वमेव लोकत्रयवतजीवनिकायसंक्लेशविनाशदक्ष ॥
श्रीपुण्डरीकाक्ष कृपानिधे त्वं निधेहि पाणि मम मूर्ध्नि विष्णो ॥४३॥
१४. विष्णुस्तवनम्
( वराह, ८ )
१६५
व्यास उवाच -
नमामि विष्णुं त्रिदशारिनाशनं विशालवक्षःस्थलसंश्रितश्रियम् ॥
सुशासनं नीतिमतां परां गति त्रिविक्रमं मन्दरधारिणं सदा ॥ ४३ ॥
दामोदरं निजितभूतलं घिया यशोंऽशुशुभ्रं भ्रमराङगसप्रभम् ॥
भवे भवं दैत्यरिपुं पुरुष्टुतं नमामि विष्णुं शरणं जनार्दनम् ॥ ४४ ॥
त्रिषा स्थितं तिग्मरथाङ्गपाणिनं नयस्थितं युक्तमनुत्तम॑र्गुणैः ॥
निःश्रेयसाख्यं क्षयितेतरं गुरुं नमामि विष्णुं पुरुषोत्तमं त्वहम् ॥ ४५ ॥
महावराहो हविषां भुजो जनो जनार्दनो मे हितकृच्चतुर्मुखः ॥
महीघरी मामुदविप्लवे महान्स पातु विष्णुः शरणायिनं तु माम् ॥४६॥

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Last Updated : September 23, 2022

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