पदसंग्रह - पदे ४३१ ते ४३५
रंगनाथ स्वामींचा जन्म शके १५३४ परिघाविसंवत्सर मार्गशीर्ष शुद्ध १० रोजीं झाला.
पद ४३१. [हिंदुस्थानी.]
राम बिना हुं तो बावरीरी ॥धृ०॥
ग्यान न जानूं ध्यान न जानूं ॥ नयनसें नयन मिलावरी री ॥१॥
पल पल छिन छिन जुग भयोरी ॥ मनमोहन गुन गावरी री ॥२॥
काह कहूं आप भुलि गई री ॥ वा बिन कछु न सुव्हवरी री ॥३॥
सुस्वरूप निजानंद साही ॥ दुजा रंग नहीं आवरीरी ॥४॥
पद ४३२.
दे दे मजला देवा तव पदसेवा हा निजसुखठेवा ॥धृ०॥
मन अना वर पापी ॥ अति संतापी ॥ भुवनत्नय व्यापी ॥१॥
अति कामी बहु कोपी ॥ स्वदोष लोपी ॥ न कधीं अनुतापी ॥२॥
मनमोहन तूं रामा ॥ अवाप्तकामा ॥ मनिउमन-विश्रामा ॥
निरतीशय निष्कामा ॥ नकळे सीमा ॥ निजरंग सुखधामा ॥३॥
पद ४३३. [चाल-इस तन धनकी]
रामा रामा ॥ जानकिजावना ॥ पतितपावना ॥ मानसमोहना ॥ नित्यनूतना ॥१॥
अहल्योद्धारा ॥ परम उदारा ॥ गुणगंभीरा ॥ निर्विकारा ॥२॥
अवाप्तकामा ॥ मंगळधामा ॥ पावन नामा ॥ हर-विश्रमा ॥३॥
दीनदयाळा ॥ त्रिभुवनपाळा ॥ अगम्यलीळा ॥ रविकुळबाळा ॥४॥
अनुपम रूपा ॥ सच्चित्स्वरुपा ॥ मंगळ दीपा ॥ निज निष्कंपा ॥५॥।
पद ४३४. [चा. सदर.]
महादेवा ॥धृ०॥
भाळलोचना ॥ वृषभवाहना ॥ अनंगदहना ॥ सामगाना ॥१॥
अपारपारा ॥ विगतविकारा ॥ जगदुद्धारा ॥ विश्वाधारा ॥२॥
विश्वचाळका ॥ भूतपाळका ॥ दु:खनाशका ॥ भक्तपोषका ॥३॥
महारुद्रा ॥ वीरभद्रा ॥ भालचंद्रा ॥ दयासमुद्रा ॥४॥
नित्य अभंगा ॥ असंग संगा ॥ भवभयभंगा ॥ श्री निजरंगा ॥५॥
पद ४३५. [चा. सदर.]
गोविंदा ॥धृ०॥
गोपवेषा ॥ परमपुरुषा ॥ जय विश्वेशा ॥ श्री जगदीशा ॥१॥
गिरिवरधारी ॥ गोपविहारी ॥ मंगळकारी ॥ लीलावतारी ॥२॥
भवभयदहना ॥ सुखसंपन्ना ॥ अंबुजनयना ॥ अनंतशयना ॥३॥
जगद्यापका दीनोद्धारका ॥ सौख्यदायका ॥ रमानायका ॥४॥
अनंग अंगा ॥ अज अव्यंगा ॥ विश्व-तरंगा ॥ चिन्मय रंगा ॥५॥
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Last Updated : November 11, 2016
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