संत महा गुनखानी ।
परिहरि सकल कामना जगकी, राम-चरन रति मानी ॥
परदुख दुखी, सुखी परसुखते, दीन-बिपति निज जानी ।
हरिमय जानि सकल जग सेवक उर अभिमान न आनी ॥
मधुर सदा हितकर, प्रिय, साँचे बचन उचारत बानी ।
बिगतकाम, मद-मोह-लोभ नहिं सुख-दुख सम कर जानी ॥
राम-नाम पियूष पान रत, मानद, परम अमानी ।
पतितनको हरिलोक पठावन जग आवत अस ज्ञानी ॥