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अब कित जाऊँजी , हार कर सर...

श्रीहनुमानप्रसादजी पोद्दार - अब कित जाऊँजी , हार कर सर...

श्रीहनुमानप्रसादजी पोद्दारके परमोपयोगी सरस पदोंसे की गयी भक्ति भगवान को परम प्रिय है।

अब कित जाऊँजी, हार कर सरणै थाँरै आयो ॥

जबतक धनकी धूम रही घर भायाँ सेती छायो ।

साला-साढ़ भोत नीसरया, नेड़ोइ साख बतायो ॥

अणगिणतीका बण्या भायला, प्रेम घणो दरसायो ।

एक-एकसें बढ़कर बोल्यो, एकहिं जीव बतायो ॥

सभा-समाज, पंच-पंचायत, ऊँचो भोत बिठायो ।

वाह-वाहकी धूम मचाई, स्याणो घणो बतायो ॥

घरका सभी, साख सबहीसूँ सबहीकै मन भायो ।

बाताँ सेती सभी पसीनै ऊपर खून बुहायो ॥

लक्ष्मी माता करी कृपा जद, चंचल रूप दिखायो ।

मया लई समेट, भरमको पड़दो दूर हटायो ॥

मात-पितानै खारो लाग्यो, भायाँ मान घटायो ।

साला साढ़ सभी बीछड़या कोइ न नेड़ो आयो ॥

'एक जीवका' भोत भायला, एक न आडो आयो ।

उलटी हँसी उड़ाई जगमै बेवकूफ बतलायो ॥

टूट्यो प्रेम, छूट्यो सँग सबसूँ सब कोई छिटकायो ।

नाक चढ़ाकर मुँहसूँ बोल्या, सब जग हुयो परायो ॥

सुखको रूप समझकर जगनें, भोत दिना भरमायो ।

खुल गई पोल, रूप सगलाँको असली चौड़े आयो ॥

मिटी भरमना सारी, थारै चरणाँ चित्त लगायो ।

नाथ ! अनाथ पतित पापीने तुरत सनाथ बणायो ॥

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Last Updated : May 24, 2008

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