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मूढ ! केहि बलपर तू इतरात...

श्रीहनुमानप्रसादजी पोद्दार - मूढ ! केहि बलपर तू इतरात...

श्रीहनुमानप्रसादजी पोद्दारके परमोपयोगी सरस पदोंसे की गयी भक्ति भगवान को परम प्रिय है।


मूढ ! केहि बलपर तू इतरात ॥

करत न सीधी बात काहु सों, सदा रहत अठलात ।

जा दिन प्रान देह तजि जैहैं, कोउ न पूछिहैं बात ॥

जेहि तनुके सुख-साज सँवारन संतत सबहिं सतात ।

सो तनु सहज धूरि मिलि जैहै छार होहिं सब गात ॥

जेहि धन संचै हेतु भूलि हरि, डोलत सब दिन-रात ।

धरम-करम तजि सदा गीध ज्यों मांस हेतु ललचात ॥

सबसों रारि करत, नहिं मानत बंधु, पूज्य, पितु-मात ।

सो धन-सरबस एहि थल रहिहै, संग न दमरी जात ॥

माल मिलकियत सब रहि जैहै सबै टूटिहैं नात ।

सगे-सहोदर, पुत्र-पाहुने, तजिहैं जननी-तात ॥

राम-नामको जाप करत खल, पंचन माहि लजात ।

'राम-नाम सत' सबै बोलिहैं तोहि मसानु लै जात ॥

रात-दिवस भटकत केहि कारन, नहिं कछु भेद लखात ।

भूलि भगतवत्सल भगवानहिं नरतनु वृथा गँवात ॥

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Last Updated : May 24, 2008

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