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होगा कब वह सुदिन समय शुभ ...

श्रीहनुमानप्रसादजी पोद्दार - होगा कब वह सुदिन समय शुभ ...

श्रीहनुमानप्रसादजी पोद्दारके परमोपयोगी सरस पदोंसे की गयी भक्ति भगवान को परम प्रिय है।

होगा कब वह सुदिन समय शुभ, मायावी मन बनकर दीन ।

मोहमुक्त हो हो जायेगा, पावन प्रभु-चरणोंमें लीन ॥

कब जगकी झूठी बातोंसे, हो जावेगी घृणा इसे ।

कब समझेगा उसे भयानक, मान रहा रमणीय जिसे ॥

कब गुरु-चरणोंकी रजको यह, निज मस्तकपर धारेगा ।

काम-क्रोध-लोभादि वैरियोंको, कब हठसे मारेगा ॥

पुण्यभूमि ऋषिसेवितमें कब, होगा इसका निर्जन-वास ।

गंगाकी पुनीत धारासे कब सब अघका होगा नास ॥

कब छोड़ेंगी सबल इन्द्रियाँ अपने विषयोंमें रमना ।

कब सीखेंगी उलटी आकर, अन्तरमें उसके जमना ॥

कब साधनके प्रकर तेजसे सारा तम मिट जायेगा ।

कब मन विषय विमुख हो हरिकी विमल भक्तिको पायेगा ॥

धन-जन-पदकी प्रबल लालसा कष्टमयि कब छूटेगी ।

मान-बड़ाई, 'मै मेरे' की फाँसी कब यह टूटेगी ॥

कब यह मोह स्वप्न छूटेगा, कब प्रपंचका होगा बाध ।

परवैराग्य प्रकट कब होगा, कब सुख होगा इसे अगाध ॥

कब भवभयके कारण मिथ्या अहंकारका होगा नास ।

कब सच्चा स्वरूप दीखेगा, छूट जायगा देहाध्यास ॥

कब सबके आहार एक भूमा-सुखका मुख दीखेगा ।

कब यह सब भेदोंमें नित्य अभेद देखना सीखेगा ॥

कब प्रतिबिम्ब बिम्ब होगा, कब नहीं रहेगा चित-आभास ।

निजानन्द निर्मल अज अव्ययमेम कब होगा नित्य निवास ॥

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Last Updated : May 24, 2008

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