कर प्रणाम तेरे चरणोंमें लगता हूँ अब तेरे काज ।
पालन करनेको आज्ञा तव मै नियुक्त होता हूँ आज ॥
अंतरमें स्थित रहकर मेरे बागडोर पकड़े रहना ।
निपट निरंकुश चंचल मनको सावधान करते रहना ॥
अन्तर्यामीको अन्तःस्थित देख सशङ्कित होवे मन ।
पाप-वासना उठते ही हो नाश लाजसे वह जल भुन ॥
जीवोंका कलरव जो दिनभर सुननेमें मेरे आवे ।
तेरा ही गुणगान जान मन प्रमुदित हो अति सुख पावे ॥
तू ही है सर्वत्र व्याप्त हरि ! तुझमें यह सारा संसार ।
इसी भावनासे अंतरभर मिलूँ सभीसे तुझे निहार ॥
प्रतिपल निज इन्द्रियसमूहसे जो कुछ भी आचार करूँ ।
केवल तुझे रिझानेको, बस, तेरा ही व्यवहार करूँ ॥