प्रभु तव चरन किमि परिहरौ ।
ये चरन मोहि परम प्यारे, छिन न इनते टरौ ॥
जिन पदनकी अमित महिमा, बेद-सुर-मुनि कहै ।
दास संतत करत अनुभव, रहत निसिदिन गहै ॥
परसि जिनको सिला तेहि छिन बनी सुंदरि नारि ।
घरनि मुनिवरकी अहिल्या, सकौं केहि बिधि टारि ॥
इन पदन सम सरन असरन, दूसरो कोउ नाहि ।
होइ जो कोउ तुम बतावहु, धाइ पकरौं ताहि ।
और बिधि नहिं टरौं टार्यो, होइ साध्य सु करौं ।
जलजगत मकरंद अलि ज्यों, मनहिं चरनन्हि धरौं ॥