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शुद्ध , सच्चिदानंद , सनात...

श्रीहनुमानप्रसादजी पोद्दार - शुद्ध , सच्चिदानंद , सनात...

श्रीहनुमानप्रसादजी पोद्दारके परमोपयोगी सरस पदोंसे की गयी भक्ति भगवान को परम प्रिय है।


शुद्ध, सच्चिदानंद, सनातन, अज अक्षर, आनँद-सागर ।

अखिल चराचरमें नित ब्यापक, अखिल जगतके उजियागर ॥

बिश्व्मोहिनी मायाके मोहन मनमोहन ! नटनागर ! ।

रसिक स्याम ! मानव-बपु-धारी ! दिब्य, भरे गागर सागर ॥

भक्त-भीति-भंजन, जन-रंजन नाथ निरंजन एक अपार ।

नव-नीरद-श्यामल सुन्दर शुचि, सर्वगुणाकर, सुषमा-सार ॥

भक्तराज वसुदेव-देवकीके सुख-साधन, प्राणाधार ।

निज लीलासे प्रकट हुए अत्याचारीके कारागार ॥

पावन दिव्य प्रेम-पूरित ब्रजलीला प्रेमीजन-सुखमूल ।

तन-मन-हारिणि बजी बंसरी रसमयकी कालिंदी-कूल ॥

गिरिधर, विविध रूप धर हरिने हर ली बिधि-सुरेंद्रकी भूल ।

कंस-केसि बध, साधु-त्राण कर यादव-कुलके हर ह्रच्छूल ॥

समरांगणमें सखा भक्तके अश्वोंके कर पकड़ लगाम ।

बने मार्गदर्शक लीलामय प्रेम-सुधोदधि, जन-सुखधाम ॥

प्रेमी पार्थब्याजसे सबको करुणाकर लोचन अभिराम ।

शरणागतिका मधुर मनोहर तत्त्व सुनाया सार्थ ललाम ॥

'मन्मना भव, भव मद्भक्तः, मद्याजी कर मुझे प्रणाम ।

सत्य शपथयुत कहता हूँ प्रिय सखे । मुझीमें ले विश्राम ॥

छोड़ सभी धर्मोको मेरी एक शरण हो जा निष्काम ।

चिंता मत कर, सभी पापसे तुझे छुड़ा दूँगा प्रिय काम ॥

श्रीहरिके सुखमय मंगलमय प्रण वाक्योंकी स्मृति कर दीन ।

चित्त ! सभी चंचलता तजकर चारु चरणोंमें हो जा लीन ॥

रसिक बिहारी मुरलीधर, गीतागायकके हो आधीन ।

त्रिभुवनमोहनके अतुलित सौंदर्याम्बुधिका बन जा मीन ॥

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Last Updated : May 24, 2008

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