भीषण तमपरिपूर्ण निशीथिनि, निविड़ निरर्गल झंझावात ।
नभ घनघोर महारवपूरित, विकट, त्रिघाती विद्युत्पात ॥
सागर-वक्ष-क्षुब्ध उल्लोलित, क्षित क्षितिधर क्षत, कंपितगात ।
प्रलय-शिखा-पावक अप्रतिहत त्रिभुवन त्रस्त्र, सहत अभिघात ॥
कैसा यह भीषण वेश ! काँपता जगत, न कोई शेष ।
बचा हुआ निर्भय, जिसने 'उस प्रियतमको पहचान लिया' ॥
धन्य वेशधारिन ! बस, मैने 'छिपे हुएको जान लिया' ।
विस्तृत अति दारिद्र्य, रोगपीड़ित अपमानित दुःसहनीय ॥
त्यक्त-बंधु, जग-हसित, श्रमिततनु, भ्रमित वेदना दुर्दमनीय ।
एकमात्र सुत-शव निपतित संमुख प्राणोपम अति कमनीय ॥
हा ! हा ! रवरत-विगत शान्ति-सुख, शोक सरितगत, नहिं कथनीय ।
नहिं सुख-स्वप्नका लेश ! निदारुण महाभयानक क्लेश !
आवृत बदन निरखकर जिसने 'प्रियतमको पहचान लिया' ।
धन्य वेशधारिन ! बस, मैने 'छिपे हुएको जान लिया' ॥
अन्नहीन तन, मृतप्राय मन, वस्त्राभाव अनावृत देह ।
अबला अवलंबविह्न, नित घृणा, दोषदर्शन, संदेह ॥
स्वजन हीन अति दीन-छीन जग वैरभावयुत विगतस्नेह ।
दलित, स्खलित, पतित, निष्कासित, देश-जति-धन-जन सुत-गेह ॥
रह गया निपट अकेला शेष ! दिगम्बर शुष्क अस्थि अवशेष ।
रुद्ररूप दर्शनकर जिसने 'प्रियतमको पहचान लिया' ।
धन्य वेशधारिन ! बस, मैने 'छिपे हुएको जान लिया' ॥