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ज्यों -ज्यों मैं पीछे हटत...

श्रीहनुमानप्रसादजी पोद्दार - ज्यों -ज्यों मैं पीछे हटत...

श्रीहनुमानप्रसादजी पोद्दारके परमोपयोगी सरस पदोंसे की गयी भक्ति भगवान को परम प्रिय है।

ज्यों-ज्यों मैं पीछे हटता हूँ त्यों-त्यों तुम आगे आते ।

छिपे हुए परदोंमे अपना मोहन मुखड़ा दिखलाते ॥

पर मै अन्धा नही देखता परदोंके अंदरकी चीज ।

मोह-मुग्ध मैं देखा करता परदे बहुरंगे नाचीज ॥

परदोंके अंदरसे तुम हँसते प्यारी मधुरी हाँसी ।

चित खींचनेको तुम तुरत बजा देते मीठी बाँसी ॥

सुनता हूँ, मोहित होता, दर्शनकी भी इच्छा करता ।

पाता नही देख, पर, जडमति इधर-उधर मारा फिरता ॥

तरह-तरहसे ध्यान खींचते करते विविध भाँति संकेत ।

चौकन्ना-सा रह जाता हूँ, नहीं समझता मूर्ख अचेत ॥

तो भी नहीं ऊबते हो तुम, परदा जरा उठाते हो ।

धीरेसे संबोधन करके अपने निकट बुलाते हो ॥

इतनेपर भी नही देखता, सिंह-गर्जना तब करते ।

तन-मन-प्राण काँप उठते है, नही धीर कोई धरते ॥

डरता, भाग छूटता, तब आश्वासन देकर समझाते ।

ज्यों-ज्यों मैं पीछे हटता हूँ त्यों-त्यों तुम आगे आते ॥

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Last Updated : September 25, 2008

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