मेरे एक राम-ना आधार ।
ढूँढ़ थक्यो पर मिल्यो न दूजो, भीर परेको यार ॥
देखे सुने अनेक महीपति, पंडित, साहूकार ।
जद्यपि नीति-धरम-धन संयुत, नहिं अस परम उदार ॥
माता-पिता, भ्राता, नारी, सुत, सेवक, बंधु अपार ।
बिपदकालमहँ कोउ न संगी, स्वारथमय संसार ॥
करि करुना दयालु गुरु दीन्हों, राम-नाम सुखसार ।
दुस्तर भवसागरमहँ अटक्यो बेरो उतर्यो पार ॥