बाल, युवा, वृद्धावस्था है तीनों पूरी हो जाती ।
मरण अनंतर पूर्वजन्मकी संतत है बारी आती ॥
घूम रही मायाचक्री यह कभी नहीं रुकने पाती ।
पर 'मैं-मैं' की एक भावना कभी नही मेरी जाती ॥
भले हो कोई कैसा स्वाँग ।
पड़ गयी सब कुओंमें भाँग ॥
इसीसे यह 'मै' 'मै' की राग ।
गा रहा, कभी न सकता त्याग ॥
कौन यह 'मै', कैसा आकार? परम प्रिय मेरे प्राणाधार !