पिता चले, जननी भी बिछुड़ी, शक्ति और सौन्दर्य गया ।
पत्नी भी चल बसी, शेष वयमें उसने भी न की दया ॥
धीरे-धीरे पुत्रोंसे भी सार नाता टूट गया ।
पूर्वजन्मकी भाँति पुनः यमदूतोंके आधीन भया ॥
हुआ परवश अधीर बेहाल ।
चल सकी एक न मेरी चाल ॥
भटकते बीता अगणित काल ।
बिबिध देहोंमें क्षुद्र-विशाल ॥
अनोखा यह कैसा ब्यवहार । परम प्रिय मेरे प्राणाधार !