नाथ ! थारै सरण पड़ी दासी ।
(मोय) भवसागरमें त्यार काटद्यो जनन-मरण फाँसी ॥
नाथ ! मै भोत कष्ट पाई ।
भटक भटक चौरासी जूणी मिनख-देह पाई । मिटाद्यौ दुःखाँकी रासी ॥
नाथ ! मैं पाप भोत कीना ।
संसारी भोगाँकी आसा दुःख भोत दीना । कामना है सत्यानासी ॥
नाथ मैं भगति नहीं कीनी ।
झूठा भोगाँकी तृसनामें उम्मर खो दीनी । दुःख अब मेटो अबिनासी ॥
नाथ ! अब सब आसा टूटी ।
(थारे) श्रीचरणाँकी भगति एक है संजीवन बूटी ।
रहूँ नित दसरणकी प्यासी ॥