बना दो बुद्धिहीन भगवान ॥
तर्क-शक्ति सारी ही हर लो, हरो ज्ञान-विज्ञान ।
हरो सभ्यता, शिक्षा, संस्कृति, नये जगतकी शान ॥
विद्या-धन-मद हरो,हरो हे हरे ! सभी अभिमान ।
नीति भीतिसे पिंड छुड़ाकर करो सरलता-दान ॥
नहीं चाहिये भोग-याग कुछ, नहीं मान-सन्मान ।
ग्राम्य, गँवार बना दो, तृणसम दीन, निपट निर्मान ॥
भर दो ह्रदय भक्ति-श्रद्धासे करो प्रेमका दान ।
प्रेमसिन्धु ! निज मध्य डुबाकर मेटो नामनिशान ॥