अरे मन, कर प्रभुपर बिस्वास ।
क्यों इत-उत तू भटक्यों डोलैं, झूठे सुखकी आस ॥
सुंदर देह, सुहावनि नारी सब बिधि भोग-बिलास ।
कहा भयो धन-पुत्र भयेतें, मिटी न जमकी त्रास ॥
नौकर-चाकर, बंधु घनेरे, ऊँची पदबी खास ।
डरत लोक देखत भौं टेढ़ी करत मृत्यु उपहास ॥
मिथ्या मद-उन्मत्त गवाँये ब्यर्थ अमोलक स्वास ।
पछितायें पुनि कछु न बसायें, बनै कालको ग्रास ॥