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खड़ा अपराधी प्रभुके द्वार ...

श्रीहनुमानप्रसादजी पोद्दार - खड़ा अपराधी प्रभुके द्वार ...

श्रीहनुमानप्रसादजी पोद्दारके परमोपयोगी सरस पदोंसे की गयी भक्ति भगवान को परम प्रिय है।

खड़ा अपराधी प्रभुके द्वार !

न्याय चाहता, क्षमा नहीं, दो दण्ड दोष अनुसार ॥१॥

अर्थ-दण्ड देना चाहो तो करो स्वार्थ सब छार ।

रहने मत दो कुछ भी इसके 'अपना' 'मेरा' कार ॥२॥

कैद अगर करना चाहो तो प्रेम-बेड़ियाँ डार ।

रक्खो बाँध इसे नित निज चरणोंके कारागार ॥३॥

निर्वासित करना चाहो तो लूटो घर-संसार ।

पहुँचा दो सत्वर दोषीको भव-समुद्रके पार ॥४॥

कभी न आने दो फिर वापस, मरने दो बेकार ।

बह जाने दो इसे वहाँ सच्चिदानन्दकी धार ॥५॥

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Last Updated : May 24, 2008

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