राम राम राम भजो, राम भज, भाई ।
राम-भजन-हेन जनम सदा दुखदाई ॥
अति दुरलभ मनुजदेह सहजहीमें पाई ।
मूरख रह्यो राम भूल बिषयन मन लाई ॥
बालकपन दुख अनेक भोगत ही बिताई ।
स्त्रीसुत-धनकी अपार चिंता तरुनाई ॥
रात-दिवस पसुकी ज्यों इत-उत रह्यो धाई ।
तृसनाकी बेलि बढ़ी पाप-बारि पाई ॥
बात-पित्त-कफहु बढ्यो दुखद जरा आई ।
इन्द्रिनकी शक्ति घटी, सिर धुनि पछिताई ॥
इतनेहिमें कठिन काल घेरि लियो आई ।
मृत्यु निकट देखि-देखि अति ही भय पाई ॥
सोच करत मन-ही-मन अतिसै पछिताई ।
हाय मै न भज्यो राम, कहा करयो माई ! ॥
मृत्यु प्रान हरन करत कुटुँबते छुड़ाई ।
महादुःख रह्यो छाय, बिफल सब उपाई ॥
पापनके फलस्वरूप बुरी जोनि पाई ।
दुःख-भोग करत पुनि नरकन महँ जाई ॥
बार-बार जनम मृत्यु, व्याधि अरु बुढ़ाई ।
झेलत अति कठिन कष्ट, शान्ति नाँहि पाई ॥
यहि बिधि भवदुख अपार बरने नहिं जाई ।
भव-भेषज राम-नाम, श्रुति पुरान गाई ॥
राम-नाम मँगलकरन सब बिधि सुखदाई ॥
प्रेममगन मनतें, सकल कामना बिहाई ।
जोइ जपत राम नाम सोइ मुकति पाई ॥