समझा, इस 'मै' में औं तुझमें किस तरहका भेद नही ।
इस विशाल 'मैं' की व्यापकतामें कोई बिच्छेद नही ॥
तुझसे भरे हुए इस 'मैं' में हुआ कभी भी खेद नही ।
सदानंद-परिपूर्ण एकरस, कोई भेदाभेद नही ॥
बिगड़ता बनता यह संसार ।
किंतु 'तू' चिर-नूतन, सुकुमार ॥
'मै' तथा 'तू' का यह उपचार ।
सभी कुछ है तेरा विस्तार ॥
धन्य तू औ तेरा ब्यापार ! परम प्रिय मेरे प्राणाधार !