जगतमें कीजै यौं ब्यवहार ।
अखिल जगत हरिमय बिचारि मन, कीजै सबसौं प्यार ॥
मात-पिता गुरुजन-पद बंदिय श्रद्धासहित उदार ।
फल बिहाय, तिनकी आग्या सौं कीजै सब आचार ॥
देस-जाति, कुल, कुटुम्ब नारि-सुत, सुह्रद, देह परिवार ।
जथाजोग सबकी सेवा नित कीजै स्वार्थ बिसार ॥
बरनाश्रम-अनुकूल करम सब कीजै बिधि अनुसार ।
फल-कामना-बिहीन, किंतु केवल करतब्य बिचार ॥