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अनोखा अभिनय यह सं सार ! ...

श्रीहनुमानप्रसादजी पोद्दार - अनोखा अभिनय यह सं सार ! ...

श्रीहनुमानप्रसादजी पोद्दारके परमोपयोगी सरस पदोंसे की गयी भक्ति भगवान को परम प्रिय है।

अनोखा अभिनय यह संसार !

रंगमंचपर होता नित नटवर-इच्छित ब्यापार ॥१॥

कोई है सुत सजा, किसीने धरा पिताका साज ।

कोई स्नेहमयी जननी बन करता नटका काज ॥२॥

कोई सज पत्नी, पति कोई करै प्रेमकी बात ।

कोई सुह्रद बना, बैरी बन कोई करता घात ॥३॥

कोई राजा-रंक बना, कोई कायर अति शूर ।

कोई अति दयालु बनता, कोई हिंसक अतिक्रूर ॥४॥

कोई ब्राह्मण, शूद्र, श्वपच है, कोई बनता मूढ़ ।

पंडित परम स्वाँग धर कोई करता बातें गूढ़ ।५॥

कोई रोता, हँसता कोई कोई है गंभीर ।

कोई कातर बन कराहता, कोई धरता धीर ॥६॥

रहते सभी स्वाँग अपनेके सभी भाँति अनुकूल ।

होती नाश पात्रता जो किंचित करता प्रतिकुल ॥७॥

मनमें सभी समझते है अपना सच्चा संबंध ।

इसीलिये आसक्त नही कर सकती उनको अंध ॥८॥

किसी वस्तुमें नही मानते कुछ भी अपना भाव ।

रंगमंच पर किंतु दिखाते तत्परतासे दाव ॥९॥

इसी तरह जगमें सब खेले खेल सभी अविकार ।

मायापति नटवर नायकके शुभ इंगित अनुसार ॥१०॥

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Last Updated : September 25, 2008

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