मन सत-संगति नित कीजै ।
संत-मिलन त्रय-ताप नसावन, संतचरण चित दीजै ॥
संतन निकट नित्यप्रति जइये, हरिनामामृत पीजै ॥
संतनि सकल भाँति नित सेइय, सब बिधि मुदित करीजै ॥
संतन महँ बिस्वास करिय नित, श्रद्धा अतिसय कीजै ।
संतहि नित हरिरूप निहारिय, संत कहे सोइ कीजै ॥
हरिको सकल मरम ते जानहिं, तिनसौं सब सुनि लीजै ।
सुनि-सुनि मनमँह धारन कीजै, मन तासों रँगि लीजै ॥
संत सुह्रद जे पंथ बतावैं, तेहि पथ गमन करीजै ॥
झटपट हरिके धाम पहुँचिये, प्रमुदित दरसन कीजै ॥