सुन्यो तेरे पतितपावन नाम !
अजामिल-से पतितकों तैं दियो अपने धाम ॥
ब्याध-खग-मृग जे रहे नित धरमतें उपराम ।
किये पावन अति पतित ते भये पूरनकाम ॥
कठिन कलिके काल अपि तारे अनेक कुठाम ।
धरमहीन, मलीन, पातक निरत आठों जाम ॥
पाप करत उछाह जुत, मम मन न लीन्ह बिराम ।
तदपि अजहुँ न मोहि तारयो, किमि बिसारयो नाम ॥