मैं नित भगतन हाथ बिकाऊँ ।
आठों जाम ह्रदयमें राखूँ पलक नही बिसराऊँ ॥
कल न परत बैकुंठ बसत मोहि, जोगिन मन न समाऊँ ।
जहँ मम भगत प्रेमजुत गावहिं तहाँ बसत सुख पाऊँ ॥
भगतनकिजैसी रुचि देखूँ तैसो बेष बनाऊँ ।
टारूँ अपने बचन भगत लगि, तिनके बचन निभाऊँ ॥
ऊँच-नीच सब काज भगतके, निज कर सकल बनाऊँ ।
पग धोऊँ, रथ हाँकूँ, माजूँ बासन, छानि छवाऊँ ॥
मागूँ नाहिं दाम कछु तिनतें, नहिं कछु तिनहि सताऊँ ।
प्रेमसहित जल, पत्र, पुष्प, फल, जो देवै सो खाऊँ ॥
निज 'सरबस' भगतनको सौंपूँ, अपनो स्वत्व भुलाऊँ ।
भगत कहैं सोइ करूँ निरंतर बेचै तो बिक जाऊँ ॥