पलभर पहले जो कहता था, यह धन मेरा यह घर मेरा ।
प्राणोंके तनसे जाते ही उसको लाकर बाहर गिरा ॥
जिस चटक-मटक औ फैसनपर तू है इतना भूला फिरता ।
जिस पद-गौरवके रौरवमें दिन-रात शौकसे है गिरता ॥
जिस तड़क-भड़क औ मौज मजोंमें फुरसत नही तुझे मिलती ।
जिस गान तान औ गप्प-शप्पमें सदा जीभ तेरी हिलती ॥
इन सभी साज-सामानोंसे छुट जायेगा रिश्ता तेरा ।
प्राणोंके तनसे जाते ही उसको लाकर बाहर गिरा ॥१॥
जिस धन-दौलतके पानेको तू आठों पहर भटकता है ।
जिस भोगोंका अभाव तेरे अंतरमें सदा खटकता है ॥
जिस सबल देह सुंदर आकृतिपर तू इतना अकड़ा जाता ।
जिन विषयोमें सुख देख रहा, पर कभी नहीं पकडे पाता ॥
इस धन, जीवन, बल, रूप सभीसे टूटेगा नाता तेरा ।
प्राणोंके तनसे जाते ही उसको लाकर बाहर गेरा ॥२॥
जिस तनको सुख पहुँचानेको तू ऊँचे महल बनाता है ।
जिसके विलासके लिये निरंतर चुन-चुन साज सजाता है ॥
जिसको सुंदर दिखलानेको है साबुन तेल लगाता तू ।
जिसकी रक्षाके लिये सदा है देवी-देव मनाता तू ॥
वह धूलि-धूसरित हो जायेगा सोने-सा शरीर तेरा ।
प्राणोंके तनसे जाते ही उसको लाकर बाहर गेरा ॥३॥
जिस नश्वर तनके लिये किसीसे लड़नेमें नहिं सकुचाता ।
जिस तनके लिये हाथ फैलाते जरा नहीं तू शरमाता ॥
जो चोर डाकुओंके डरसे नित पहरोंके अंदर सोता ।
जो छायाको भी भूत समझकर डरता है व्याकुल होता ॥
वह देह खाक हो पड़ा अकेला सूने मरघटमें तेरा ।
प्राणोंके तनसे जाते ही उसको लाकर बाहर गेरा ॥४॥
जिन माता-पिता, पुत्र-स्वामीको अपना मान रहा है तू ।
जिन मित्र-बन्धुओंको, वैभवको अपना जान रहा है तू ॥
है जिनसे यह सम्बन्ध टूटना कभी नहीं तैने जाना ।
है जिनके कारण अहंकारसे नहीं बड़ा किसको माना ॥
यह छूटेगा सम्बन्ध सभीसे, होगा जंगलमें डेरा ।
प्राणोम्के तनसे जाते ही उसको लाकर बाहर गेरा ॥५॥
है जिनके लिये भूल बैठा उस जगदीश्वरका पावन-नाम ।
तू जिनके लिये छोड़ सब सुक्रुत पापोंका है बना गुलाम ॥
रे भूले हुए जीव ! यह सब कुछ पड़े यहीं रह जायेंगे ।
जिनको तैने अपना समझा, वे सभी दूर हट जायेंगे ॥
हो जा सचेत ! अब व्यर्थ गवाँ मत जीवन यह अमूल्य तेरा ।
प्राणोके तनसे जाते ही उसको लाकर बाहर गेरा ॥६॥