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पलभर पहले जो कहता था , यह...

श्रीहनुमानप्रसादजी पोद्दार - पलभर पहले जो कहता था , यह...

श्रीहनुमानप्रसादजी पोद्दारके परमोपयोगी सरस पदोंसे की गयी भक्ति भगवान को परम प्रिय है।

पलभर पहले जो कहता था, यह धन मेरा यह घर मेरा ।

प्राणोंके तनसे जाते ही उसको लाकर बाहर गिरा ॥

जिस चटक-मटक औ फैसनपर तू है इतना भूला फिरता ।

जिस पद-गौरवके रौरवमें दिन-रात शौकसे है गिरता ॥

जिस तड़क-भड़क औ मौज मजोंमें फुरसत नही तुझे मिलती ।

जिस गान तान औ गप्प-शप्पमें सदा जीभ तेरी हिलती ॥

इन सभी साज-सामानोंसे छुट जायेगा रिश्ता तेरा ।

प्राणोंके तनसे जाते ही उसको लाकर बाहर गिरा ॥१॥

जिस धन-दौलतके पानेको तू आठों पहर भटकता है ।

जिस भोगोंका अभाव तेरे अंतरमें सदा खटकता है ॥

जिस सबल देह सुंदर आकृतिपर तू इतना अकड़ा जाता ।

जिन विषयोमें सुख देख रहा, पर कभी नहीं पकडे पाता ॥

इस धन, जीवन, बल, रूप सभीसे टूटेगा नाता तेरा ।

प्राणोंके तनसे जाते ही उसको लाकर बाहर गेरा ॥२॥

जिस तनको सुख पहुँचानेको तू ऊँचे महल बनाता है ।

जिसके विलासके लिये निरंतर चुन-चुन साज सजाता है ॥

जिसको सुंदर दिखलानेको है साबुन तेल लगाता तू ।

जिसकी रक्षाके लिये सदा है देवी-देव मनाता तू ॥

वह धूलि-धूसरित हो जायेगा सोने-सा शरीर तेरा ।

प्राणोंके तनसे जाते ही उसको लाकर बाहर गेरा ॥३॥

जिस नश्वर तनके लिये किसीसे लड़नेमें नहिं सकुचाता ।

जिस तनके लिये हाथ फैलाते जरा नहीं तू शरमाता ॥

जो चोर डाकुओंके डरसे नित पहरोंके अंदर सोता ।

जो छायाको भी भूत समझकर डरता है व्याकुल होता ॥

वह देह खाक हो पड़ा अकेला सूने मरघटमें तेरा ।

प्राणोंके तनसे जाते ही उसको लाकर बाहर गेरा ॥४॥

जिन माता-पिता, पुत्र-स्वामीको अपना मान रहा है तू ।

जिन मित्र-बन्धुओंको, वैभवको अपना जान रहा है तू ॥

है जिनसे यह सम्बन्ध टूटना कभी नहीं तैने जाना ।

है जिनके कारण अहंकारसे नहीं बड़ा किसको माना ॥

यह छूटेगा सम्बन्ध सभीसे, होगा जंगलमें डेरा ।

प्राणोम्के तनसे जाते ही उसको लाकर बाहर गेरा ॥५॥

है जिनके लिये भूल बैठा उस जगदीश्वरका पावन-नाम ।

तू जिनके लिये छोड़ सब सुक्रुत पापोंका है बना गुलाम ॥

रे भूले हुए जीव ! यह सब कुछ पड़े यहीं रह जायेंगे ।

जिनको तैने अपना समझा, वे सभी दूर हट जायेंगे ॥

हो जा सचेत ! अब व्यर्थ गवाँ मत जीवन यह अमूल्य तेरा ।

प्राणोके तनसे जाते ही उसको लाकर बाहर गेरा ॥६॥

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Last Updated : May 24, 2008

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