जगतमें कोइ नहिं तेरा रे ।
छाड बृथा अभिमान त्याग दे मेरा-मेरा रे ॥
काल करम बस जग-सराय बिच कीन्हा डेरा रे ।
इस सरायमें सभी मुसाफर, रैन-बसेरा रे ॥
जिस तनको तू सदा सँवारै साँझ-सबेरा रे ।
एक दिन मरघट पड़े भसमका होकर ढेरा रे ॥
मात-पिता, भ्राता, सुत-बांधव, नारी चेरा रे ।
अंत न होय सहाय, काल जब देवै घेरा रे ॥
जगका सारा भोग सदा कारन दुखकेरा रे ।
भज मन हरिका नाम, पार हो भव-जल बेरा रे ॥
दीनदयालु भक्तवत्सल हरि मालिक तेरा रे ।
दीन होय उनके चरनोमें कर ले डेरा रे ॥