हुआ अब मैं कृतार्थ महाराज ।
दिया चरन आश्रय गरीबको, धन्य ! गरीबनवाज ॥
घूमा नभ-जल-पृथिवीतलपर, धरे नित नये साज ।
मिली न शान्ति कही प्रभु ! ऐसी, जैसी मुझको आज ॥
बिबिध रूपसे पूजा मैने कितना देव-समाज ।
कितने धनी उदार मनाये, हुआ न मेरा काज ॥
दुखसमुद्रमें डूब रहा था मेरा भग्न जहाज ।
चरण-किनारा मिला अचानक, छूटा दुखका राज ॥