नाथ अब लीजै मोहि उबार !
कामी, कुटिल, कठिन कलिकवलित कुत्सित कपटागार ।
मोही, मुखर-महा मद-मर्दित, मंद, मलिन-आचार ॥
वलयित विषय, वितडित, विचलित, विकसित विविध विकार ।
दीन, दुखी, दुरदृष्ट, दुरत्यय, दुर्गत, दुर्गुण-भार ॥
पंकिल, प्रचुर, पतित, परिपंथी, निरपत्रप, निःसार ।
निःस्व, निखिलनिगमागम-वर्जित, निगडित नित गृह-दार ॥
दीनाश्रय ! तव विरद विपत्ति-विदारण श्रुति-विस्तार ।
सुनत सुयश शुचि सो अब मैं आगत अघहारी-द्वार ॥