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दीनबन्धो ! कृपासिन्धो !...

श्रीहनुमानप्रसादजी पोद्दार - दीनबन्धो ! कृपासिन्धो !...

श्रीहनुमानप्रसादजी पोद्दारके परमोपयोगी सरस पदोंसे की गयी भक्ति भगवान को परम प्रिय है।

दीनबन्धो ! कृपासिन्धो ! कृपाबिन्दू दो प्रभो !

उस कृपाकी बूँदसे फिर बुद्धि ऐसी हो प्रभो ॥

वृत्तियाँ द्रुतगामिनी हो जा समावें नाथमें ।

नदी-नद जैसे समाते है सभी जलनाथमें ॥

जिस तरफ देखूँ उधर ही दरस हो श्रीरामका ।

आँख भी मूँदूँ तो दीखै मुखकमल घनश्यामका ॥

आपमें मै आ मिलूँ प्रभु ! यह मुझे वरदान दो ।

मिलती तरंग समुद्रमें जैसे मुझे भी स्थान दो ॥

छूट जावे दुःख सारे, क्षुद्र सीमा दूर हो ।

द्वैतकी दुबिधा मिटै, आनन्दमें भरपूर हो ॥

आनन्द सीमारहित हो, आनन्द पूर्णानन्द हो ।

आनन्द सत आनन्द हो, आनन्द चित आनन्द हो ।

आनन्दका आनन्द हो, आनन्दमें आनन्द हो ।

आनन्दको आनन्द हो, आनन्द ही आनन्द हो ।

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Last Updated : May 24, 2008

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